Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 192
________________ [ 146 ] प्रागमों पर रचित वृत्ति, चूणि, भाष्य टोकादि साहित्य एवं व्याकरण पौर शब्दकोष तथा प्राचीन प्रतिमा पर उट्ट कित शिलालेखों आदि सामग्री आदि का सहारा लेकर जिनप्रतिमा, जिनमंदिर और जिनपूजा आदि विषयों में गवेषणा और तथ्य का अन्वेषण करना अत्यन्त पावश्यक था जिस पर प्राचार्य ने पर्दा ही डाल दिया, इससे यह सिद्ध होता है कि प्राचार्य को अंधकार ही पसन्द है / प्राचार्य का जैनधर्म विषयक मूर्तियों की चौकियों पर उकित लेखों से श्रीनन्दीसूत्र और श्री कल्पसूत्र की स्थविरावलियों को प्रमाणित करना और स्वयं मूर्तियों को प्रमाणित नहीं करना यह अर्धजरतीय न्याय सर्वथा अनुचित ही माना जाएगा। निक्खमण नाण निव्वाण, जम्म भूमीउ वंदई जिणाणं // -जिस भूमि से तीर्थकर भगवान ने जन्म लिया हो, दीक्षा ली हो, केवलज्ञान पाया हो एवं निर्वाण ( मोक्ष ) प्राप्त किया हो, उस पवित्र कल्याणक भूमि की ( जैनियों को ) वंदना-स्पर्शना करनी चाहिए। -प्रागमेतर जैन साहित्य में सबसे प्राचीन ग्रन्थ श्री उपदेशमाला [श्लोक-२३६]

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