Book Title: Kalpit Itihas se Savdhan
Author(s): Bhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 187
________________ [ 143 ] पबासन एवं एक स्तूप आदि मिले हैं, उनमें करीब 110 की संख्या में प्राचीन शिलालेख और अनेक मूर्तियां एवं श्री सुपार्श्वनाथ का प्राचीन स्तूप जैनों से सम्बन्धित हैं ऐसा इतिहासज्ञों का निश्चयात्मक रूप से कहना है / इन मूर्तियों के शिलालेखों में मौर्यकाल, गुप्तकाल और कुशागवंशी राजाओं का समय 2000 या 2200 वर्ष पूर्व का कहा जा सकता है / अतः इन अवशेषों को भी इतना ही प्राचीन कहना चाहिए / हमारे जैन पूर्वाचार्यों ने उपकार करके इन राजामों को जैनधर्म प्रेमी बनाया था और जैन शासनोन्नति हेतु इनसे जैन मंदिर बनवाकर श्री अरिहंत, सिद्ध प्रादि की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित करवायी थीं। इन सब तथ्यों से इतना तो अवश्य स्पष्ट होता ही है कि नय दृष्टि का अभ्यासी एक तटस्थ व्यक्ति कभी भी जिनप्रतिमादि विषयों का विरोध या अनादर नहीं कर सकता है। "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" खंड 2, टिप्पणी पृ० 32 पर प्राचार्य हस्तीमलजी लिखते हैं कि xxx मथुरा के कंकाली टोले की खुदाई का कार्य सर्व प्रथम ई० सन् 1871 में जनरल कनिंघम के तत्त्वावधान में, दूसरी बार सन् 1888 से 1891 में डा० फ्यूरर के तत्त्वावधान में तथा तीसरी बार पं० राधाकृष्ण के तत्त्वावधान में करवाया गया। इन तीनों खुदाईयों में जैन इतिहास की दृष्टि से बड़ी महत्त्वपूर्ण विपुल सामग्री उपलब्ध हुई। वह सामग्री आज से 1891 से लेकर 1798 वर्ष तक की प्राचीन एवं प्रामाणिक होने के कारण बड़ी विश्वसनीय है। Xxx - मीमांसा-ये सामग्री "इतिहास की दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण है" ऐसा प्राचार्य का लिखना धोखा मात्र ही है / क्योंकि इन खुदाई में से निकले जिनप्रतिमादि प्राचीन अवशेष सिर्फ इतिहास की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, किन्तु प्रात्मा में भरे पड़े मिथ्यात्व अंधकार को दूर

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