________________ [ 127 ] कम ही है"-ऐसा.मालवणियाजी का लिखना कितना प्रात्मवंचक एवं भ्रामक है, इस बात की पुष्टि अपने पाप हो जाती है। अंग्रेज विद्वान डा. हर्मन जैकोबी के जैनधर्म विषयक कथनों के विषय में खंड 1, पृ० 768 पर प्राचार्य लिखते हैं कि Xxx डा० जैकोबी की धारणा के बाद 31 वर्ष के सुदीर्घ काल में इतिहास ने बहुत कुछ नई उपलिब्धयां की हैं, इसलिए भी डा० जैकोबी के कथन को अन्तिम रूप से मान लेना यथार्थ नहीं है।xxx __ मीमांसा-इसी प्रकार हमारा भी यही कहना है कि "नये तथ्यों की संभावना अब कम ही रही है"-ऐसा पंडित श्री मालवणियाजी का लिखना अनुचित एवं तथ्यहीन होने के कारण अविश्वसनीय ही है / जिनपूजनसत्कारयोः करणलालसः खल्वाद्यो देशविरति परिणामः / अर्थात्-देशविरति ( श्रावक ) धर्म का आद्य परिणाम श्री जिनेश्वर भगवान की पूजा और सत्कार करने की लालसा है। यानी जिसे श्री जिनेश्वर भगवान की पूजा और सत्कार करने की लालसा नहीं है, उसे पंचम गुणस्थानक स्वरूप देशविरति-श्रावकपन का प्राद्य परिणाम भी प्राप्त नहीं है। -1444 ग्रंथ के रचयिता श्री हरिभद्रसूरिजी महाराज