________________ [ 136 ] भगवान श्री महावीर स्वामी के निर्वाण से 250 वर्ष बाद प्राचार्य श्री आर्य सुहस्ति महाराज द्वारा प्रतिष्ठित और श्री अवंतिसुकुमाल मुनि की स्मृति में उनके पुत्र द्वारा निर्मित श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा "श्री अवंति पार्श्वनाथ" के नाम से आज भी उज्जैन में बिराजित हैं। कालक्रम से अन्य धर्मियों द्वारा शिवलिंग स्थापित कर इस प्रतिमा को ढक दिया था / जिसको विक्रम संवत् प्रवर्तक राजा विक्रमादित्य के समय में प्रभावक प्राचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरिजी ने कल्याण मंदिर स्तोत्र की रचना द्वारा पुनः प्रगट किया था। उनके द्वारा रचित "कल्याण मंदिर स्तोत्र" आज भी जैन समाज में अत्यन्त प्रसिद्ध है, जिस स्तोत्र के पीछे “अवंति पार्श्वनाथ" की प्रतिमा का रहस्य छीपा हुआ है। __ श्री अवंति सुकुमाल के चरित्र में "त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र" का उल्लेख पूर्वक खंड 2, पृ० 462 पर प्राचार्य हस्तीमलजी लिखते हैं कि xxx आचार्य हेमचन्द्र द्वारा परिशिष्ट पर्व में किये गये उल्लेख के अनुसार अवंति सुकुमाल के पुत्र ने अपने पिता की स्मृति में उनके मरण स्थल पर एक विशाल देवकुल का निर्माण करवाया जो आगे चलकर महाकाल के नाम से विख्यात हुआ। [परिशिष्ट पर्व, सर्ग-११] Xxx मीमांसा–प्राचीन, ज्ञानवन्त, धुरंधर विद्वान् पूज्पपाद् कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज साहब को सिर्फ प्राचार्य हेमचन्द्र इतना अबहुमान सूचक शब्द प्रयोग प्राचार्य ने किया है जिसका हमें खेद है। अपरंच “देवकुल" ऐसा क्लिष्ट और संदिग्ध प्रयोग