________________ [ 116 ] अनेकान्त दृष्टि के कारण ही अनेक स्थानकपंथी मुनियों ने मुहपत्ति का डोरा तोड़कर शुद्ध संवेगी साधु मार्ग अपनाया था। “सत्यसंदेश” संपादक-पारसमल कटारिया। लेखक-सौभाग्यचन्द लोढापृ० 23 पर लिखते हैं कि 80. उन्होंने ढूढकमत को त्यागकर शुद्ध संवेगी मत स्वीकार किया।xxx मीमांसा-गणिवर श्री मुक्तिविजयजी ( मूलचन्दजी ), गणिवर श्री बुद्धिविजयजी (बूटेरायजी), महोपाध्याय श्री रणधीर विजयजी, महान जैनाचार्य पूज्य श्री विजयानन्दसूरिजी (आत्माराम जी), मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी आदि अनेक विद्वानों ने कल्पित जानकर स्थानक पंथ का त्याग किया था और शुद्ध संवेगी साधु मार्ग में दीक्षा ली थी और साहित्य लेखन द्वारा स्थानकमत विषयक भ्रमजाल का पर्दा खोलने का सराहनीय प्रयास किया था। बात तो यह है कि भोली जनता को अंधेरे में तब तक ही भटकाया जा सकता है जब तक उनमें संस्कृतप्राकृत भाषा द्वारा ज्ञान का प्रकाश न हो। आश्चर्य तो इस बात का है कि स्थानकपंथी अपने प्राद्यप्रवर्तक लोकाशाह के बताये रास्ते से भी विपरीत चलते हैं, वे अगर उनसे भी प्राचीन शास्त्रों को मान्य नहीं करें तो आश्चर्य ही क्या है ? खंड 1, पृ० 666 पर प्राचार्य लिखते हैं कि xxx14 पूर्व के रचियता गौतमस्वामी आनन्द को मिच्छामिदुक्कडं देते हैं। 888