________________ [ प्रकरण-१७ ] अंबड सन्यासी और सम्यग्दर्शन प्रागम शास्त्रों में जहां भी श्रावक के बारह व्रतों का वर्णन पाया है वहां सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन का वर्णन पाया है। सम्यग्दर्शन प्रहण के बिना बारह व्रत की प्राराधना निष्फल मानी गई है / प्रतः श्री भगवती आदि सूत्रों में आनन्द, कामदेव आदि श्रावकों के बारह व्रत स्वीकारने की बात पायी है, वहां बारह व्रत के पूर्व सम्यग्दर्शन के स्वीकार की बात आती है। क्योंकि समकित बिना नवपूर्वी को भी प्रज्ञानी माना गया है। श्रद्धा भ्रष्ट को जैनागम ने भ्रष्ट कहा है। श्रद्धाभ्रष्ट जमालि मादि के चारित्र की कीमत फूटी कौड़ी भी नहीं मानी गई है। सुदेव-सुगुरु-सुधर्म पर ही श्रद्धा-विश्वास करना अर्थात् कुदेव, कुगुरु और कुधर्म को त्यागना यह सम्यग्दर्शन है। यानी अरिहंत देव और अरिहंत देव की प्रतिमा को ही मानना पूजना, अन्य मिथ्यादृष्टि देव-देवियों में विश्वास नहीं करना / पंच महाव्रत धारी शुद्ध जिनागम प्ररूपक साधुनों को ही गुरु मानना, कुवेष-कुलिंग धारी, उत्सूत्र प्ररूपक, पालू प्रादि अनंतकाय और बासी, द्विदल प्रादि अभक्ष्य को भक्षण करने वाले को गुरु नहीं मानना तथा वीतराग श्री अरिहंत देव प्ररूपित सत्त्वों पर ही श्रद्धा-विश्वास करना यह सम्यग्दर्शन है।