________________ [ 68 ] 1500 तापस गुरु श्री गौतम स्वामी की कृपा से केवलज्ञानी बने थे। श्री गौतम स्वामी ने जिनको भी दीक्षा दी है, उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया है, अतः अाज भी "गौतम सरिखा गुरु नहीं" ऐसा जैन जन जन के दिल में गूजता है। खंड 2, पृ० 32 से 36 तक में पूज्य श्री गौतमस्वामी के विषय में प्राचार्य हस्तीमलजी ने बहुत कुछ लिखा है, किन्तु श्री गौतमस्वामी का स्वलब्धि बल से श्री अष्टापद गिरि पर तीर्थयात्रा हेतु जाना, अष्टापदगिरि के सोपान पर लब्धिप्राप्ति हेतु तप करते हुए 1500 तापसों को खीर का पारणा करवाना आदि तथ्यों को छिपा के उन्होंने प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी के चरित्र के साथ. सरासर अन्याय किया है / पृ० 36 पर प्राचार्य लिखते हैं कि 800 वे सर्वाक्षर सन्निपात जैसी विविध लब्धियों के धारक थे। 808 पृ० 36 पर लिखते हैं कि 444 प्रतिदिन लाखों जन आज भी प्रभात की मंगल वेला में भक्ति पूर्वक भाव विभोर हो बोलते हैं, अंगूठे अमृत बसे, लब्धि तणां भंडार / श्री गुरु गौतम समरिये, वांछित फल दातार // xx मीमांसा-श्री गौतमस्वामी ने अंगूठे में से अमृत कहाँ और क्यों बहाया ? लब्धि का उपयोग कहां और क्यों किया? वे वांछित फल के दातार किस कारण कहे जाते हैं ? इन तथ्यों को प्राचार्य ने अपने इतिहास में क्यों छिपाया है ? क्या एक इतिहासकार को ऐसी वंचना शोभनीय है ?