________________ [ प्रकरण-२४] श्री भद्रबाहुस्वामी प्रौर उवसग्गहरं स्तोत्र भगवान श्री महावीर स्वामी की पाट परम्परा में प्रार्य श्री प्रभव स्वामी के पश्चात् पूज्य यशोभद्रसूरिजी पाये / आपके शिष्य पार्य श्री भद्रबाहु स्वामी 14 पूर्वधर थे। आपका जीवन वृत्तान्त इस प्रकार है। प्रार्य श्री यशोभद्रसूरिजी के पास ब्राह्मण ज्ञातीय भद्रबाहु और वराहमिहिर नाम के दो भाईयों ने दीक्षा ली। श्री भद्रबाहुस्वामी विनयवन्त और तेजस्वी थे, गुरुकृपा से आप चौदहपूर्व के धारक बनें और पापको योग्य जानकर गुरु ने प्राचार्य पदारूढ़ किया। प्राचार्यपदेच्छु वराहमिहिर को अयोग्य जानकर गुरु ने प्राचार्य पद नहीं दिया / अतः वह फिर से ब्राह्मण वेश धारणकर नैमित्तिक बन गया। एक बार राजा के घर पुत्र का जन्म हुआ, तब वराहमिहिर ने बालक की मायु 100 साल बताई, किन्तु आर्य श्री भद्रबाहुस्वामी ने बताया कि उसकी सातवें दिन बिडाल से मौत होगी / बालक की सुरक्षा के निमित्त राजा ने सब बिडाल बिल्ली को नगर के बाहर निकाल दिया। फिर भी सातवें दिन बालक की मृत्यु कपाट की अर्गला पर उत्कीर्ण बिडाल की प्राकृति वाली अर्गला से हो गयी। राजा को ज्ञात हुआ कि पूज्य भद्रबाहुस्वामी का ज्ञान सत्य से परिपूर्ण है। लोगों में वराहमिहिर की बड़ी हाँसी हुई, वह अज्ञानकष्ट से मरकर देव हुआ