________________ [ 107 ] हैं ? मेरठ में स्थानकपंथी साधु के स्मारक स्वरूप एक कोर्ति स्तम्भ बना है, उसके चारों तरफ बाग, बगीचे, नीचे हरि दूब तथा बिजली प्रादि जगमगाते हैं ? मंदिर की आलोचना करने वाले और मंदिर में नहीं जाने की प्रतिज्ञा कराने वाले प्राचार्य ने उक्त कार्यों का क्या कभी विरोध किया है ? या उस स्थान पर दर्शनार्थ नहीं जाने की प्रतिज्ञा अपने भक्तों को दी है ? स्याद्वाददृष्टि से हम तो इतना ही कहेंगे कि भगवान की प्राज्ञा में ही धर्म है। पूज्य कालिकाचार्य ने लड़ाई तक लड़वाई है, इस पर भी वे महान अहिंसक कहे जाते हैं / मूढ़ लोग भले दया पलवाई उसको अहिंसा माने, किन्तु पानी में थोड़ी सी राख डालकर कच्चा पानी पिलाने के कारण बाहरी कल्पित अहिंसा भी भीतर से महाहिंसा है, इतना ही नहीं किन्तु ऐसी कुप्रवृत्ति मिथ्यात्व को बढ़ावा भी देती है। प्रागमेतर जैन शास्त्रों में सबसे प्राचीन, श्री महावीर स्वामी के द्वारा दीक्षित पूज्य धर्मदास गणि महाराज द्वारा विरचित "उपदेशमाला" शास्त्र में कहा है कि xxx तम्हा सव्वणुन्ना, सव्वनिसेहो य पवयणे नत्थि / आयं वयं तुलिज्जा, लाहाकंखिव्व वाणिओ ॥श्लोक 392 // भावार्थ-जिनाज्ञा उत्सर्ग और अपवाद रूप में है। जैनागमों में त्याज्य रूप से जिसका निषेध किया गया है, उसका भी अपवाद मार्ग से विधान बताया गया है / यानी जैन प्रवचन में सर्वनिषेध कहीं भी नहीं है / अतः लाभाकांक्षी बनिये की तरह लाभालाभ विचार करके ही प्रवृत्ति करनी चाहिए /