________________ [ 6] तथ्य यह है कि अक्षीण महानस लब्धि से श्री अष्टापदगिरि के सोपान पर तप करते 1500 तापसों को खीर के पात्र में अंगूठा रखकर चाहे जितनी खीर बहाकर श्री गौतम स्वामी ने पारणा करवाया था, इसलिये उनके विषय में कहा जाता है कि "अंगूठे प्रमृत बसे / " तथा स्व विद्या-लब्धि बल से सूर्य की किरणों को पकड़कर वे प्रष्टापदजी तीर्थ पर यात्रा करने गये थे, प्रतः उन्हें "लब्धि तणां भण्डार" कहते हैं और उन्होंने जिनको भी दीक्षा दी थी, उनको केवलज्ञान रूप अक्षयलक्ष्मी की प्राप्ति हुई है. अतः उनको वांछित फल दातार कहते हैं। इन्हीं कारणों से बाज भी श्री गौतम स्वामी का नाम जैन जन-जन के हृदयों में अंकित है। प्राचार्य हस्तीमलजी ने श्री गौतमस्वामी को विविध लब्धियों का धारक बताया है, किन्तु श्री गौतम स्वामी ने लब्धियों का उपयोग कब और कहाँ किया था ? प्रतिदिन लाखों जन उनको लब्धि का निधान कहकर क्यों याद करते हैं ? वे अंगूठे से अमृत बहाने वाले क्यों कहे जाते हैं ? प्रादि अनेक प्रश्नों को मंदिर और मूर्ति विरोधी स्वमान्यता के कारण प्राचार्य ने जो छिपाने की कुचेष्टा की है. वह विचारणीय है / प्राचार्य पद धारक होते हुए एक व्यक्ति जिनप्रतिमा, जिनमंदिर एवं तीर्थों आदि के विषय में तथ्यों को छिपाये या पक्षपातपूर्ण वर्तन करे, यह क्या न्यायपूर्ण है ? ऐसी दशा में 'संपादकीय नोंध" पृ० 30 ( पुरानी प्रावृत्ति ) पर मुख्य संपादक श्री गजसिंहजी राठौड़ (न्यायतीर्थ) का लिखना सरासर झूठ और असंगत एवं प्रात्मवंचक है कि 444 इतिहास-लेखन जैसे कार्य के लिये गहन अध्ययन, क्षीर नीर विवेकमयी तीव्र बुद्धि, उत्कट कोटि को स्मरण शक्ति, उत्कट साहस,