________________ [ 66 ] अंबड नाम का एक सन्यासी श्री महावीर भगवान का भक्त बना था। खंड 1, पृ० 661-662 पर प्राचार्य हस्तीमलजी ने अंबड सन्यासी का अधिकार लिखा है, किन्तु अंबड ने श्री महावीर स्वामी के पास सम्यग्दर्शन को स्वीकार किया था, इस विषय में प्राचार्य ने एक शब्द भी नहीं लिखा है, जो इतिहास लेखक की अपूर्णता का सूचक है। . अंबड सन्यासी जब सम्यग्दर्शन को स्वीकार करता है तब भगवान श्री महावीर स्वामी के सामने प्रतिज्ञा करता है कि. xxxणण्णत्थ अरिहंते वा अरिहंत चेइयाणि वा वंदिता वा नमसंति वा। [ श्री उववाई सूत्र ] 888 . अर्थात्-[ अंबड कहता है, हे भगवन् ! प्राज से मुझे ) अरिहंत और अरिहंत की प्रतिमा की वंदन करना कल्पे, अन्य हरि हरादि और उनकी स्थापना-प्रतिमा को नहीं / - उक्त सूत्र का समदर्शी लौंकागच्छीय प्राचार्य श्री अमृतचन्द्र सूरि ने निम्नलिखित अर्थ किया है। यथा - xxx अरिहंत और अरिहंत की प्रतिमा की स्थापना ते वंदन करवा कल्पे (अन्य नहीं)। [ श्री उववाई सूत्र पृ० 297 ] 88 कल्पित एवं ऊटपटांग अर्थ करते हैं कि