________________ [ 86 ] भेजकर महाज्ञानी चारणमुनियों को भी वे उल्लू बना रहे हैं। क्या चारणमुनि इतने मूर्ख हैं कि अरूपी ज्ञान का यहां बैठे बैठे वंदन न करके लब्धि का प्रयोग करके वहाँ जाए ? और नंदनवन एवं पंडकवन में जाने हेतु लब्धि का प्रयोग करने पर भी क्या वहाँ ज्ञानी के ज्ञान के भंडार भरे पड़े हैं कि गुणानुवाद करने हेतु इतने योजनों की लम्बी यात्रा करें। ___पंडकवन और नंदीश्वर द्वीप स्थित शाश्वत जिन मन्दिरों में चारण मुनि जाते हैं और वहां चैत्यवंदन करते हैं इस शास्त्रीय तथ्य को सत्य होता देखकर नितांत असत्य का सहारा लेकर स्थानकपंथी महा विद्वान रतनलालजी डोशी (शैलावा वाले ) "जैनागम विरुद्ध मूर्तिपूजा भाग-१" पृ० 166 पर महा साहस पूर्वक लिखते हैं कि 888 हमारे विचार से [ चारणमुनि का ] वहां जाने का मुख्य कारण नंदनवन को "सर" करने का ही हो सकता है, क्योंकि यह भी एक छद्मस्थता की पलटती हुई चञ्चल विचार धारा का परिणाम है।xxx मीमांसा-स्थानकपंथी महापंडित रतनलालजी की छद्मस्थता की पलटती हुई चंचल विचारधारा का परिणाम देखिये कि वे पंडितजी छ? और सातवें गुणस्थानक में स्थित, महासंयमी-ज्ञानी चारण मुनियों को पंडकवन और नंदीश्वर द्वीप में सैर-सफर के लिये भेजने की मूर्खता कर रहे हैं और चारणमुनियों को नंदीश्वर द्वीपादि में जाने की प्रवृत्ति को छद्मस्थता की चंचलधारा का परिणाम कहने पर तो, तीर्थंकरों और केवलज्ञानियों को छोड़कर अन्य सब ज्ञानियों की प्रवृत्तियाँ गलत कहने की अज्ञानता भी वे पंडितजी कर रहे हैं / वास्तव में चाहे अमोलक ऋषिजी हों, चाहे प्राचार्य हस्तीमलजी हों या पंडित रतनलालजी डोशी हों, सभी स्थानकपंथी ही