________________ [ 84 ] इस पाठ में (1) अरिहंत (2) चैत्य और (3) अनगार, यह तीन का शरण कहा है / यदि चैत्य शब्द का अर्थ साधु होता तो 'अनगार' शब्द पृथक् क्यों कहा ? अतः चैत्य का अर्थ साधु ( मुनि ) करने वाले स्थानकपंथी झूठे साबित होते हैं / चैत्य शब्द का दूसरा कल्पित अर्थ अमोलक ऋषि 'ज्ञान' करते हैं, यह भी देखिये / श्री भगवती सूत्र में गणधर श्री गौतमस्वामी तीर्थंकर महावीर स्वामी को चारणमुनि के उत्पात [विद्याबल से छलांग लगाने की शक्ति) के विषय में पूछते हैं कि - 444 "विज्जाचारणस्स भंते ! उड्ढे केवइए गइ विसए पण्णत्ते ? गोयमा ! से णं इत्तो एगेणं उप्पाएणं णंदणवरणे समोसरणं करई, करिता ताहि चेइयाइं वंदइ, वंदइत्ता बितिएणं उप्पाएणं पंडगवणे समोसरणं करई, करित्ता तहिं चेइयाइं वंदई, वंदइत्ता तओ पडिणियत्तई, पडिणियइत्ता, इहमागच्छई, इहमागच्छित्ता इह चेइयाई वंदई / विज्जाचारणस्स गं गोयमा ! उड्ढे एवइए गई विसए पण्णत्त / " [ भगवती सूत्र-शतक 20, उद्देश 9 ]688 उक्त सूत्र का शास्त्रोक्त अर्थ - "हे भगवन् ! विद्याचारण लब्धिवाले मुनियों का ऊर्ध्व में गमन का कितना विषय कहा है ? [ भगवान श्री महावीर स्वामी उत्तर देते हैं कि-] हे गौतम ! विद्याचारण मुनि यहां से एक उत्पात में नंदनवन में विश्राम लेवे, वहां के चैत्य यानी जिनबिंब [प्रतिमा] को वान्दे, वहाँ के जिनचैत्य ( जिनबिम्ब ) को वन्दन करके (पर्युपासना करके ) पंडकवन में जाए, वहां चैत्य यानी जिनबिंब को वन्दन करके (पर्युपासना करके ) फिर स्वस्थान लौटे और स्वस्थान के ( मध्यलोक के अशाश्वत ) जिनबिम्ब