________________ [ 1] जिनपूजा निमित्त आकाशगामिनी विद्या द्वारा पुष्प लाना आदि बातों से ही उनको क्यों नाराजगी है ? जिनप्रतिमा पूजा, जिनमन्दिर और जैनतीर्थों ने प्राचार्य का क्या बिगाड़ा है, कि उनके साथ सम्बन्धित घटनामों को वे चमत्कारिक कहकर नफरत करते हैं ? ___ एक प्रश्न यह भी है कि प्राचार्य हस्तीमलजी चिंतक किसको कहते हैं ? अाधुनिक जो चिंतक नास्तिक हैं, अश्रद्धावान हैं और मिथ्यात्ववासित हैं, उनको तो कितनी भी सत्य होने पर धर्म संबंधी कोई भी बात सुहायेगी ही नहीं / ऐसे बहुत से आधुनिक चिंतक इतने नास्तिक हैं कि वे धर्म को "नशा" की संज्ञा देते हैं। ऐसे चितकों की तुष्टि के लिये असत्य का सहारा लेकर, पूर्वाचार्यों के कथनों को धृष्टता पूर्वक अन्यथा कहकर प्राचार्य हस्तीमलजी सभी जैन शास्त्रों को जी चाहे वैसे पलट डाले, फिर भी प्राचीन जैन शास्त्रों की बात पर उनके माने हुए आधुनिक चिंतकों को विश्वास होगा या नहीं यह प्रश्न ज्यों का त्यों खड़ा ही रहेगा / फिर तो "लेने गई पूत और खो पायी खसम" वाली कहावत प्राचार्य द्वारा चरितार्थ हो जायगी। जैन धर्म में भी ऐसे बहुत से व्यक्ति हैं जो आगम और प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य वृत्ति, चूर्णि, भाष्य और टीकादि कथित प्रामाणिक सत्य होने पर और ऐतिहासिक प्राचीन शिलालेखों एवं ध्वंसावशेषों की सामग्री मौजूद होते हुए भी जिनमंदिर तथा जिन प्रतिमा आदि के विषय में श्रद्धा नहीं करते हैं, फिर क्या उनके लिए प्राचीन आगम शास्त्रों को बदल दिया जाय ? अथवा प्राचीन जैन प्रतिमा और मंदिर आदि को इन्द्रजाल ही समझा जाय ? जिसके दिल में प्राचीन जैनाचार्यों पर श्रद्धा, भक्ति और बहुमान है, वह कभी भी अविश्वास पूर्ण वचन नहीं बोलेगा कि "पूर्वाचार्यों ने ऐसी चमत्कारिक घटना का उल्लेख कर दिया है, जिस