________________ [प्रकरण-१८] वशपूर्वधर श्री वजस्वामी के विषय में पक्षपात धनगिरि ने अपनी सगर्भा पत्नी को छोड़कर पूज्य प्रार्य श्री सिंहगिरिजी से दीक्षा ली थी। जन्म के बाद अपने पिता की दीक्षा की बात सुनकर बालक को जाति स्मरण ज्ञान हो गया और माता से छुटकारा पाने के लिये उसने दिन रात रोना शुरू किया। परेशान माता ने अपने पुत्र को धनगिरि को सौंप दिया। गुरु प्रार्य श्री सिंहगिरिजी ने भारी वजन होने के कारण बालक का नाम वज्र रखा। बालक वज्र ने साध्वीजी के उपाश्रय में रहते रहते साध्वियों द्वारा रटाते हुए शास्त्र पाठों को सुन सुनकर ग्यारह अंग कंठस्थ कर लिये। बालक वज़ को बाद में आर्य श्री धनगिरि ने दीक्षा दी। प्रापने क्रम से श्री भद्रगुप्ताचार्य के पास 10 पूर्व का अध्ययन किया और आर्य श्री धनगिरिजी ने आपको अपना पट्टधर बनाया। पापको प्राकाशगामिनी लब्धि थी, जिसके प्रयोग से आप समस्त श्री जैनसंघ को पट्ट पर बैठाकर दुभिक्ष क्षेत्र से सुभिक्ष के क्षेत्र में लाये थे। उस सुभिक्ष क्षेत्र का राजा बौधधर्मी था, जो जैनधर्मावलम्बियों से द्वेष रखता था। पवित्र पर्युषणा पर्व में तीर्थंकर परमात्मा के पूजन हेतु पुष्प चाहिए थे, जिनको देने के लिये बौद्ध राजा ने मना कर दिया था। तब प्रार्य श्री वज्रस्वामी विद्या द्वारा प्राकाश मार्ग से हिमवंत पर्वत पर गये और श्री देवी के