________________ [ 70 ] पास से कमल तथा पितृमित्र देव के पास से बीस लाख पुष्प लाकर प्रतिस्पद्धि बौद्धों के सामने जैन धर्म की प्रभावना करते हुए शासनोन्नति का महान कार्य किया था। इस शासन प्रभावना से प्रभावित होकर बौद्धराजा एवं अन्य प्रजा भी जैनधर्मी बन गये थे। दशपूर्वधर शासन प्रभावक महान जैनाचार्य श्री वज्रस्वामी के विषय में खंड 2, पृ. 578 पर प्राचार्य हस्तीमलजी लिखते हैं कि RXXआपने आकाशगामिनी विद्या का प्रयोग करके संघ को सुभिक्ष में पहुंचाया था। वहाँ का राना बौद्धधर्मानुयायी होने के कारण जैन उपासकों के साथ विरोध रखता था, पर आर्यवन के प्रभाव से वह भी श्रावक बना और इससे धर्म की बड़ी प्रभावना हुई।888 . मीमांसा–देखिये ! यहाँ कैसा गोल-मोल एवं अप्रमाणिक लिखा गया है / बौद्धराजा पर आर्य श्री वज्रस्वामी का कौन सा प्रभाव पड़ा था, जिसके कारण बौद्धधर्म को छोड़कर वह जैनधर्मी बन गया। इस तथ्य को संदिग्ध रखकर प्राचार्य ने अपनी पुरानी खासियत के मुताबिक जिनमूर्तिपूजादि के विषय में सत्य से ही अनादर किया है / क्योंकि बौद्ध राजा के जैनधर्मी बनने के पीछे प्रार्य श्री वज्रस्वामी का आगाशगामिनी विद्या द्वारा आकाशमार्ग से जाकर श्रीदेवी के पास से पद्म एवं पितृमित्र देव के पास से 20 लाख पुष्प लाना आदि कारण है यह सत्य है। जिन मंदिर और जिनप्रतिमापूजा के विषय में मतिभ्रम और सम्मोह के कारण स्थानकपंथी कभी भी सत्य नहीं लिख सकते हैं। फिर भी भार्य श्री वज्रस्वामी आकाशगामिनी विद्या से आकाश मार्ग से भगवान की पुष्पपूजा हेतु पुष्प लाये थे और जैनमतावलम्बियों के मनोरथों की पूर्ति की थी। इस तथ्य का