________________ [ प्रकरण-१६] जैनधर्म मौर माडम्बर चातुर्मास में दर्शनार्थियों के लिए चौका लगवाने की प्रेरणा करना, निज की प्रतिष्ठा एवं प्रदर्शन हेतु कोसों की दूरी से भक्तजनों को दर्शन के बहाने बुलाना, निज की तस्वीरें छपवाना-बँटवाना, पत्रिका एवं साप्ताहिक पत्र प्रादि निकालना, श्रावकों का सम्मेलन करवाना, उपाश्रय-स्थानक बनवाना, गोठ-प्रीतिभोज करवाना, नारियल आदि की प्रभावना बँटवाना, अपने गुरु का जन्मदिन मनवाना तथा इस हेतु पत्रिका छपवाना आदि अनेक बाह्य क्रियाकांड और बाह्य आडम्बर करने में हिंसा और पाप नहीं मानने वाले दयाधर्म के ठेकेदार ( ! ) स्थानकपंथियों जिनमन्दिर निर्माण, जिन प्रतिमा प्रतिष्ठा, जिन प्रतिमा पूजा, सिद्धचक्र प्रादि पूजन, स्नात्र पूजा, स्वामी वात्सल्य, तीर्थयात्रा, यात्रासंघ, जलयात्रा का जलूस आदि जैनधर्म सम्बन्धित प्राचीन और जैनशासनोन्नतिकारी जैन शास्त्र कथित पवित्र क्रियानों को मनभर के कोसते हैं और बाह्य प्राडम्बर कहकर उनका अनादर एवं अपलाप करते हैं, यह अत्यन्त गलत कृत्य है। वैसे देखा जाए तो जिस क्रियादि को प्राचार्य हस्तीमलजी अपनी "सिद्धान्त प्रश्नोत्तरी" नामक किताब में बाह्य प्राडम्बर और बाह्य क्रियाकांड कहते हैं, वह जैनधर्म की कौनसी प्रवृत्ति में नहीं है ! तीर्थंकर परमात्मा का समवसरण में रत्न के सिंहासन पर बैठना, नव