________________ [प्रकरण-२१ ] चैत्य यानी जिनमंदिर या जिनप्रतिमा चैत्य शब्द का अर्थ जिनमन्दिर अथवा जिनप्रतिमा ऐसा होता है / स्थानकपंथी लोग गुरुवंदन के 'तिक्खुत्ता" नामक पाठ में "देवयं चेइयं पज्जुवासामि" ऐसा बोलते हैं / किन्तु "चेडयं" शब्द का अर्थ वे गलत करते हैं / 'चेइयं' यानी "चैत्य" शब्द का अर्थ स्थानकपंथी सन्तों द्वारा विविध पुस्तकों में विविध किया गया है। ' चे इयं पज्जुवासामि" का शास्त्रीय अर्थ “जिनप्रतिमा की तरह मैं ( गुरु की) उपासना करता हूं," ऐसा होता है / एक इतिहासकार के नाते प्राचार्य हस्तीमलजी को आगमशास्त्रों, पागमेतर प्राचीन जैन साहित्य, वृत्ति, चणि, भाष्य तथा टीकादि और शब्दकोष-व्याकरण के सहारे से स्वमान्यता को दूर रखकर तटस्थता एवं प्रामाणिकता से 'चे इयं' यानी 'चैत्य' शब्द का अर्थ करना अत्यन्त आवश्यक था किन्तु इस विषय में प्राचार्य ने अंधेरे में ही रहना उचित समझा है और ऐसा करके उन्होंने अपने इतिहास को भी अपूर्ण रखा है / फिर भी खंड 2, पृ० 623 से 628 तक प्राचार्य ने "चैत्यवास" के विषय में चैत्य का अर्थ नहीं करके ही लम्बी चौड़ी निरर्थक चर्चा चलायी है। किन्तु चैत्य' का अर्थ "जिनमंदिर" होता है इस तथ्य को पुष्टि उनसे मानों या न मानों हो ही गयी है। जैनागमों में जहाँ भी चैत्य शब्द प्राता है, वहाँ स्थानकपंथी संत आदि चैत्य शब्द का जिन प्रतिमा और जिनमंदिर ऐसा प्रकरण