________________ [ 75 ] मीमांसा-श्रेणिक का राजसी वैभव से जाने में मार्गगमन जन्य हिंसा तो हुई ही होगी, फिर प्राप्त भगवान ने क्यों नहीं कह दिया कि-"यह दयाधर्म के सिद्धान्त के विरुद्ध है।" यदि भगवान एक बार श्रेणिक जैसे विनयवन्त भक्त को निषेध कर देते तो अन्य राजा कभी वंबन हेतु ऐसे प्राडम्बर सहित नहीं जाते। राजा दर्शाणभद्र ने सर्वश्रेष्ठ शोभा के साथ भगवान की वन्दना के लिये जाने की सोची और इन्द्र ने उनकी सर्वश्रेष्ठ शोभा का गर्व चूर कर दिया, बाद में उसने चारित्र-दीक्षा ली। खंड 1, पृ० 658 पर प्राचार्य लिखते हैं कि xxx उसमे ( दर्शाणभद्र ने ) बड़ी धामधूम से प्रभु वन्दन की तैयारी को और चतुरंग सेना व राज परिवार सहित सजधज कर वन्दन को निकला। 888 मीमांसा-धूमधाम और सजधज कर यानी बाह्याडम्बर से जाने की प्रवृत्ति को जैन शास्त्रों में कहीं भी अनुचित नहीं ठहराया है, दयाधर्मियों को यह विचारने की बात है। खंड 1, पृ० 745 पर प्राचार्य हस्तीमलजी लिखते हैं कि 444 तदनन्तर कूणिक ने अपने नगर में घोषणा करवाकर नागरिकों:को प्रभु के शुभागमन के सुसंवाद से अवगत कराया और अपने समस्त अन्तःपुर, परिजन, पुरजन, अधिकारी वर्ग एवं चतुरंगिणी सेना के साथ प्रभुदर्शन के लिये प्रस्थान किया।xxx मीमांसा–प्राप्त भगवान ने एवं प्राचीन शास्त्रकारों ने जैनधर्म के प्रचार, प्रसार एवं उन्नतिकारक ऐसी प्रवृत्तियों को कभी भी