________________ [ 64 ] नाम हेमचन्द्र, हरिभद्र, यशोविजय, शीलांग, मलयगिरि, ऐसे प्रबहुमान, अनादर, अविनय मोर प्रभक्ति पूर्ण शब्द प्रयोग करके उनके प्रति अपना अभिमान, मनम्रता और प्रश्रद्धा सूचित करते हैं। महाज्ञानी पूर्वाचार्यादि के पवित्र नाम के आगे पीछे विशेषण न देकर करना चाहिए उतना सम्मान नहीं करने वालों में और इस प्रविनय पूर्ण प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में स्थानकवासी सम्प्रदाय में प्राचार्य हस्तीमलजी भी एक हैं जिसका हमें सखेद आश्चर्य है। उपकारी के उपकार का बदला अपकार से चुकाने की ऐसी कृतघ्नता पूर्ण नीति-रीति को प्राचार्य भविष्य में अवश्य सुधारेंगे, हमारी यही माशा है। अभ्यर्चनावहतां मनः प्रसादस्ततः समाधिश्च / तस्मादपि निःश्रेयसमतो हि तत्पूजनं न्याग्यम् / श्री अरिहंत परमात्मा की अभ्यर्चना से मन की प्रसन्नता, मन की प्रसन्नता से निःश्रेयस-मोक्ष प्राप्त होता है। इसलिये सभी मुमुक्षु आत्माओं को अरिहंत प्रभु की पूजा अवश्य करना चाहिए / यह न्याय संगत एवं उचित है। -10 पूर्वधर पूज्य उमास्वाति महाराज