________________ [ 56 ] सर्वथा उचित ही है / एवं ज्ञानभित वैराग्यवन्त होते हुए भी तीर्थंकर परमात्मा नियत समय पर ही चारित्र लेते हैं, उसी तरह स्वयंबुद्ध होने पर भी अगर वे कोई बाह्य निमित्त से चारित्र ग्रहण करते हैं, तो उसमें शास्त्र सिद्धान्त सहमत है / श्री शान्तिनाथ भगवान के चरित्र में खंड 1, पृ० 240 पर प्राचार्य स्वयं लिखते हैं कि xxx लोकान्तिक देवों से प्रेरित होकर प्रभु ने वर्षभर याचकों को इच्छानुसार दान दिया.......... ( यावत् ) सिद्ध की साक्षी से सम्पूर्ण पापों का परित्याग कर दीक्षा ग्रहण की।xxx __ मीमांसा–उक्त प्रकार ही पूर्वाचार्यों का प्राचीन ग्रन्थों में ऐसा कहना है कि श्री पार्श्वकुमार को चारित्र का निमित्त श्री नेमिनाथ तथा राजीमति के बारात के चित्र हुए थे। इस सत्य तथ्य को प्रामाणिकता पूर्वक प्राचार्य को स्वीकार करना चाहिए / पाप नहीं कोई उत्सूत्र भाषण जिस्यो, धर्म नहीं कोई जग सूत्र सरिखो // -अध्यात्ममूर्ति महान विद्वान् श्री प्रानन्दघनजी महाराज