________________ [ 61 ] दीक्षा में निमित्त हुए थे और प्रस्तुत में भगवती मल्लिकुमारी अपनी प्रतिकृति-प्रतिमा द्वारा छहों राजाओं को प्रतिबोधित करती हैं। इन सब तथ्यों से प्रतिमा विषयक सत्य की पुष्टि होती है, जिसे प्रामाणिकता और हिम्मतपूर्वक प्राचार्य को स्वीकार करना चाहिए एवं तस्वीर सिर्फ "परिचय" के लिये ही नहीं है, किन्तु ज्ञान वंदनादि के लिये भी है ऐसा अनेकान्तवाद का माश्रय लेना चाहिए। हमारे पास स्थानकमार्गी प्राचार्य चौथमलजी सहित 43 मुनियों की सामूहिक तस्वीर-फोटो है, जिसके विक्रय हेतु समाचार पत्रों में भी प्रचार करवाया गया था। यद्यपि "तस्वीर सिर्फ परिचय के लिये है" ऐसा तस्वीर के नीचे लिखकर स्थानकपंथी बाहर से थोथा विरोध करते हैं किन्तु निज की तस्वीरें चाव से छपवाने और बँटवाने वाले वे लोग अपने अन्दर झांककर देखें तो उन्हें तस्वीर का मुख्य प्रयोजन अपने आप मालुम हो जाएगा / जड़ नाम के स्मरण के पीछे जो प्राशय सधता है, इससे अनेक गुणा प्राशय जड़ तस्वीर या प्रतिमा के दर्शन पूर्वक के नाम स्मरण से सधता है, यह उनको समझना चाहिए। अपनी तस्वीरें बड़े चाव से छपवाने-बटवाने वाले स्थानकपंथी संतों ने क्या कभी तीर्थंकर भगवान की तस्वीर भी छपवायीबंटवायी है ? अरे ! और तो क्या कहें ? एकान्ते शरण्य, ज्ञानदाता श्री तीर्थंकर की तस्वीर से नफरत करनेवाले प्राचार्य हस्तीमलजी स्वयं ने ही अपने इतिहास में दानदाता गृहस्थ की तस्वीर छपवाई है। तीर्थंकर भगवान की तस्वीर के प्रति ही ऐसा पक्षपात और घृणा करना प्राचार्य का अनुचित एवं कृतघ्नतापूर्ण कृत्य है / विषम काले जिन बिम्ब जिनागम __ भविजन को आधारा।