________________ [प्रकरण-१४] श्री पार्श्वनाथजी को वैराग्य एक बार पार्श्वकुमार कुमारावस्था में बगीचे में अपनी पत्नी प्रभावती के साथ गये। वहाँ महल की दीवार पर श्री नेमिनाथजी ने राजीमति को छोड़कर किस प्रकार चारित्र लिया इनके विषय में चित्र देखे। यह निमित्त पाकर पार्श्वकुमार चारित्र लेने के लिये उद्यत हुए। इस विषय में पूर्वमुनि रचित श्री पार्श्वनाथजी की स्तुति भी जैन समाज में प्रसिद्ध है यथा "नेमिराजी चित्र विराजी, विलोकित व्रत लिये" / अर्थात्- नेमिनाथजी और राजीमति को (बारात के) चित्र में विराजमान देखकर पार्श्वकुमार ने चारित्र लिया। __श्री पार्श्वकुमार को चारित्र लेने में चित्र निमित्त बने हैं ऐसा पूर्वाचार्य कहते हैं, फिर भी यह बात प्राचार्य हस्तीमलजी को प्रखरती है, जो सर्वथा अनुचित है। चित्र दर्शन से ज्ञान प्राप्ति के इस सत्य तथ्य को अन्य पूर्वाचार्यों के नाम लिखकर प्राचार्य ने स्वयं को अलिप्त रखने की चेष्टा की है और इतिहासकार के नाते सत्य में अरुचि प्रगट की है, जो उचित नहीं है।