________________ [ 58 ] श्री पार्श्वकुमार को तस्वीर से [ चित्र दर्शन से ] वैराग्य हुआ है, इस तथ्य को मजबूर होकर खंड 1, पृ० 486 पर प्राचार्य हस्तीमलजी को अन्य पूर्वाचार्यों के नाम लिखने पड़े हैं कि xxx जैसे 'चउवन महापुरिस चरियं' के कर्ता आचार्य शीलांक, "सिरिपास नाह चरियं" के रचयिता देवभद्रसूरि और 'पार्श्वनाथ चरित्र' के लेखक भावदेव तथा हेमविजयगणि ने भित्तिचित्रों को देखने से ( पार्श्वकुमार को ) वैराग्य होना बताया है। Xxx. मीमांसा-इतने सारे प्राचीनाचार्यों का कथन होने पर तो प्राचार्य को तस्वीर विषयक तथ्य को अवश्य स्वीकारना ही चाहिए और इस विषय में अपनी नाराजगी दूर करनी ही चाहिए। स्थानकपंथ के पाद्य प्रणेता एक वृद्ध जैन भाई लोंकाशाह ने चारित्र लिया था, ऐसा कहीं से सिर्फ संकेत मात्र मिल जाने पर बढ़ा चढ़ाकर लम्बी वाक्य . रचना कर देने में कुशल प्राचार्य को पार्श्वकुमार के वैराग्य में प्राचीन पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों का सहारा मिलने पर भी सत्य को स्वीकार करने में कौनसा सिद्धान्त बाध्य करता है ? अपनी तस्वीर बनवाकर बँटवाने वाले, गृहस्थ की तस्वीर को अपने इतिहास में छपवाने वाले, तीर्थंकर परमात्मा के लांछन चित्रों को मान्यता देनेवाले आचार्य जब तीर्थकर परमात्मा की तस्वीर मात्र से ही नफरत करते हैं तब सखेद पाश्चर्य होता है। यद्यपि जन्म से ही तीन ज्ञानधारक तीर्थंकर परमात्मा स्वयं बुद्ध होते हैं, वे किसी से बोध पाकर चारित्री नहीं बनते, फिर भी जैसे अरिष्टनेमिकुमार का शादी न करके चारित्र लेने में पशुओं का करुण क्रंदन निमित्त हुआ है, वैसे ही पार्श्वकुमार को नेमिनाथ और राजीमति का चित्र दर्शन चारित्र का निमित्त बना ऐसा पूर्वाचार्यों ने कहा है, जो