________________ [ प्रकरण-१२] मार्य श्री शय्यंभव सूरि मौर जिन प्रतिमा जिसप्रकार श्री मुनिसुव्रत स्वामी के स्तूप के कारण वैशाली नगरी का विनाश संभव न हो सका था, ठीक उसीप्रकार यज्ञस्तम्भ (यूप) के नीचे रही भगवान श्री शांतिनाथजी की प्रभावशाली प्रतिमा के कारण शय्यंभव ब्राह्मण का यज्ञादि फलफूल रहा था और बाद में वे प्रतिमा दर्शन के कारण ही जैनदीक्षा में प्रतिबुद्ध हुए थे। श्री महावीर स्वामी की पाट परम्परा में श्री सुधर्मा स्वामी के बाद चौथे श्री शय्यं भव सूरिजी पाये। आपने श्री दशवकालिक सूत्र की रचना की थी / आर्य श्री शय्यंभव सूरि के विषय में श्री दशवैकालिक नियुक्ति शास्त्र तथा त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र इतिहास कश्रित कथानक इस प्रकार है। प्रार्य श्री प्रभवस्वामी को अपने समुदाय में चतुर्विध श्री संघ संचालक तेजस्वी साधु नहीं मिला / राजगृह नगर निवासी, यज्ञानुष्ठान निरत शय्यं भव ब्राह्मण को ज्ञानवल से सुयोग्य जानकर आप राजगृही में पधारे और दो साधुत्रों को संकेत पूर्वक शय्यंभव के यज्ञमंडप पर गोचरी के लिये भेजा / शय्यंभव ब्राह्मण ने यज्ञमंडप ( स्थल ) अपवित्र होने के डर से उनको रोका। तब साधु बोले कि-"तुम तत्त्व नहीं जानते" / शय्यंभव ने यज्ञगोरपुरोहित को तत्त्व पूछा / प्रधान पुरोहित ने यज्ञयाग और वेद को ही तत्त्व बताया। इस पर भी शय्यंभव की जिज्ञासा शांत न हुई और क्रुद्ध