________________ [प्रकरण-] माकुमार और जिन प्रतिमा पूर्वभव में चारित्र की आराधना शबल ( सदोष ) रूप से करने पर अनार्य देश में जन्मे हुए राजपुत्र प्रार्द्रकुमार ने मगध सम्राट श्रेणिक के पुत्र अभयकुमार के गुणगान सुनकर उनको उपहार भेजा और उनसे मैत्री चाही / भव्य जीव जानकर बुद्धिनिधान अभयकुमार ने आर्द्रकुमार को धर्म प्रेमी बनाने हेतु प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान की रत्न की प्रतिमा भेट भेजी और आर्द्रकुमार को कहलाया कि इस उपहार को एकान्त में खोलना। परम वीतराग श्री ऋषभदेव भगवान की मूर्ति-प्रतिमा को ध्यान से देखते देखते प्रार्द्रकुमार को पूर्वजन्म का स्मृति ज्ञान हो गया और जिनप्रतिमा के दर्शन से उन्हें समकिप्त लाभ हुआ। पूर्वजन्म का साधुपन याद आने के कारण तथा साधु बनने की तीव्र भावना से उसने अनार्य देश से भागकर मगधदेश में प्राकर चारित्र ग्रहण किया। जिन प्रतिमा देखकर प्रार्द्रकुमार को पूर्वजन्म का जातिस्मरण ज्ञान एवं बोधि लाभ हुअा था, इस विषय में श्री सूर्यगडांग सूत्र, दूसरा श्रुतस्कन्ध, छट्ठा अध्ययन में कहा है किxxxपीतीय दोण्ह दूओ, पुच्छणमभयस्स पत्थवेसो उ। तेणावि सम्मदिदित्ति, होज्ज पडिमारहंमिगया // बटुं सम्बुद्धो रक्खिओ य / Xxx