________________ [ 43 ] ने पुत्र प्रार्द्र को वैरागी जानकर, यह कहीं चला नहीं जाए इस वास्ते 500 सुभटों के बीच में उसको रखा, इत्यादि / श्री सूयगडांग सूत्र में यह भी उल्लेख किया है कि जब तक आर्द्रकुमार ने चारित्र-दीक्षा ग्रहण नहीं की तब तक वह अभयकुमार से प्राप्त जिन प्रतिमा की प्रतिदिन पूजा करता रहा था। आर्द्रकुमार के उक्त कथानक के विषय में जिनप्रतिमा की बात आने के कारण तथ्य को तोड़-मरोड़ कर प्राचार्य हस्तीमलजी "अपनी बात" खण्ड 1, पृ० 30 पर लिखते हैं कि xxx अभयकुमार ने अनार्य देशस्थ अपने पिता के मित्र अनार्य नरेश के राजकुमार ( आर्द्र) को धर्म प्रेमी बनाने के लिये "धर्मोपगरण (?)" की भेंट भेजी। xx __मीमांसा-उक्त कथन प्राचार्य ने कौन से प्राचीन शास्त्र के आधार पर किया है यह उन्हें प्रामाणिकता पूर्वक कहना चाहिये / श्री सूयगडांग सूत्र, भरतेश्वरवृत्ति, श्री पार्द्रकुमार चरित्र प्रादि प्राचीन ग्रंथों में अभयकुमार ने प्रार्द्रकुमार को ( श्री ऋषभदेव भगवान की ) जिनप्रतिमा भेजी ऐसा स्पष्ट कथन होते हुए भी जिनप्रतिमा विषयक स्वमतविरोध के कारण प्राचार्य ने सुनी-सुनाई स्वमति कल्पित बात लिख दी है, जिसमें सत्य का सर्वथा अभाव ही है। यद्यपि कतिपय स्थानकपंथी लेखक अपनी पुस्तकों में ऐसा लिखते हैं कि अभयकुमार ने आर्द्रकुमार को "मुंहपत्ती का टुकड़ा" भेजा था। कोई "अोधा ( रजोहरण)" भेजने का भी लिखते हैं, जों शास्त्र निरपेक्ष होने के कारण नितांत असत्य है। जैन धर्म के विषय में स्वोत्प्रेक्षित तर्क एवं कल्पना शक्ति के आधार पर इतिहास लिखने वाले आचार्य हस्तीमलजी ने यहाँ