________________ [ 40 ] मीमांसा-इतिहास गवेषकों के लिये पूर्वाचार्यों द्वारा रचित मागमाश्रित नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य और टीका प्रादि शास्त्र सहायक सिद्ध हो रहे हैं, इस सहायता से सत्य की गवेषणा करके प्राचार्य सत्यतथ्य आत्मसात् करें, तभी उनकी कथनी और करनी एक हो सकती है / . आश्चर्य तो इस बात का है कि प्राचार्य ने स्वमान्यता पोषक एवं जिनमन्दिर विरोधक इतिहास एक नामधारी समिति द्वारा बनवाया है, किन्तु पूर्वाचार्यों के कथन एवं ऐतिहासिक तथ्यों पर नहीं / ऐसी दशा में जैनागम और आगमेतर प्राचीन जैन साहित्य वृत्ति, चूर्णि, भाष्य, टीकादि शास्त्र एवं मंदिर, मूर्तियां आदि पुरातन अवशेषों को वे इन्द्रजाल ही सिद्ध कर रहे हैं / इस पर भी इन सबको सहायक लिखना आत्मवंचना मात्र प्रतीत होता है / जब तक आचार्य हस्तीमलजी जैन इतिहास के मूलस्तम्भ जैनागम, पूर्वाचार्यों द्वारा रचित पागमेतर जैन साहित्य वृत्ति, चूणि, भाष्य एवं टीकादि शास्त्रों का सत्य माधार एवं मंदिर और जिनप्रतिमा के विषय में ऐतिहासिक प्राचीन अवशेषों का तथ्य होते हुए भी मूर्तिपूजा जैसे वास्तविक सत्य विषय को विवादास्पद बनायेंगे या उनके विषय में हठधर्मिता रखेंगे तब तक वे इतिहास लिखने पर भी अंधेरे में ही हैं और रहेंगे। जैनागम और आगमेतर प्राचीन जैन साहित्य वृत्ति, चूरिण, भाष्य और टीकादि शास्त्र जिसके दिल में हैं, वास्तव में उसके दिल में साक्षात् वीतराग ही बैठे हैं। -1444 ग्रन्थकर्ता पूज्य हरिभद्रसूरिजी महाराज