________________ [ 35 ] किया है। फिर खंड 1 (पुरानी प्रावृत्ति ) अपनी बात पृ० 26 पर लिखना कि-"साम्प्रदायिक अभिनिवेशवश कोई भी अप्रमाणिक बात नहीं आवे इस बात का ध्यान रखा गया है" यह नितांत गलत एवं भ्रान्तिपूर्ण ही साबित होता है / क्योंकि पूर्वाचार्यों के कथन को झूठा करके अन्य के असत्य कथन को आगे करना क्या अप्रमाणिकता नहीं है ? "त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र" और 'चउवन महापुरिस चरिया" इन दों महान ग्रंथों में लिखित युक्तियुक्त प्रामाणिक बात न मानके और "संभव है" ऐसा लिखकर पुराणों की किंवदन्ती को मान करके प्राचार्य ने विश्वासघात किया है। पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों के सहारे इतिहास लिखना और जिनमन्दिर एवं जिन प्रतिमा की बात पाये वहाँ कृतघ्नतापूर्वक यह कह देना कि-"पूर्वाचार्यों ने पुराणों की कथा से प्रभावित होकर ऐसी कहानी प्रस्तुत करदी है, जो नितांत गलत है / " फिर तो बहुत सी बातें पुराणों की कथा से प्रभावित होकर प्राचीन जैनाचार्यों ने कही है, ऐसी मूर्खतापूर्ण बात कहने की एवं मानने को आपत्ति भी आसकती है। कल्पना की उडान में भटकते हुए प्राचार्य अपनी धुन में यह भी तुलना करना भूल गये हैं कि वह पुराण की उक्ति प्राचीन है या अपने आचार्यों की उक्ति प्राचीन है ? अगर यह तुलना की जाती तो वे ऐसा लिखने का महान् साहस नहीं कर पाते / जैन पूर्वाचार्यों के कथनों को झूठा कहने वाले यह क्यों भूल जाते हैं कि फिर उनके कथन पर कौन विश्वास करेगा ? . -न्याय विशारद पूज्य प्राचार्य श्री भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराज - -