________________ क्या उनके भक्तगण उनको वंदनीय मानेंगे ? क्या अन्य स्थानकपंथी मुनि उसको तिखुत्ता के पाठ से वंदन करेंगे? राजकीय पुरुषों की समाधि पर पुष्प चढ़ाना, राष्ट्रध्वज को वंदन करना-सलामी देना, देशनेताओं के बावले पर पुष्पमाला अर्पण करना, गुरु के जड़ भासन, पाट आदि को पैर न लगाना, गुरु की तस्वीर युक्त लोकेट बांटना यह सब मूर्तिपूजा के ही प्रकार हैं। समवसरण में चतुर्मुख तीर्थंकर का स्वीकार करने वाले शेष तीन प्रतिमा-मूर्तियों का अपलाप कैसे कर सकते हैं ? चारों तीर्थंकर भगवान के समक्ष लोग वन्दन, पूजन सत्कार, सम्मान करते हैं देवेन्द्र, चवर ढुलाते हैं, सब जीवों को स्व सम्मुख दर्शन-देशनादि मिलता है। इन सब तथ्यों से प्रतिमा-प्राकृति की महत्ता का सन्यायनिष्ट प्रामाणिक सज्जन कैसे अपलाप कर सकते हैं ? प्राचीन शिलालेखों एवं प्रतिमा पट्टों पर उट्टकित लेखों से प्रतिमा पूजा की ठोस सिद्धि होती है / जैनागम एवं प्राचीन जैन शास्त्र भी प्रतिमापूजा संबंधित इस सत्य तथ्य को जगह जगह पर पुष्टि करते ही हैं। दशवैकालिक शास्त्र तो दीवार पर चित्रित स्त्री-चित्र को ब्रह्मचारी के लिये खतरनाक बताते हुए उस स्थान में रहने का भी निषेध करता है। यथा 888 चित्तमित्तं न निज्माए, नारौं वा सु अलंकियं / ___ भक्खरं पिव बठ्ठणं, विट्ठि पडिसमाहुरे // [श्री दशवकालिकसूत्र-अध्ययन 8 (गाथा 55) Xxx . श्री कल्पसूत्र शास्त्र [सूत्र 103] बताता है कि