________________ [प्रकरण-५ ] तीर्थकर के बारह गुण राग-द्वेष विजेता तीर्थंकर श्री अरिहंत परमात्मा के बारह गुणों में कुछ कपट का सहारा लेकर भाचार्य हस्तीमलजी खंड 1, पृ०६१ पर इस प्रकार लिखते हैं कि Xxx (1) अनन्तज्ञान (2) अनंतदर्शन (3) अनंत चारित्र यानी वीतराग भाव (4) अनंतबल-वीर्य (5) अशोकवृक्ष (6) देवकृत पुष्पवृष्टि (7) दिव्यध्वनि (8) चामर (9) स्फटिक सिंहासन (10) छत्रत्रय (11) आकाश में देवदुन्दुभि और (12) भामन्डल / पांच से बारह तक के माठ गुणों को प्रातिहार्य कहा गया है / भक्तिबश देवों द्वारा यह महिमा की जाती है।xxx मीमांसा–पांच से बारह तक के आठ गुणों को देवकृत कहने पर भी छ8 गुण में "देवकृत पुष्पवृष्टि" ऐसा लिखना प्राचार्य की अप्रमाणिकता ही है / “देवकृत पुष्पवृष्टि" लिखने पर तो देवकृत अशोक वृक्ष, देवकृत दिव्य ध्वनि ऐसा भी लिखना चाहिए / फिर "पांच , से बारह तक के पाठ गुणों को प्रातिहार्य कहा गया है, भक्तिवश देवों द्वारा यह महिमा की जाती है / " ऐसा लिखने की आवश्यकता नहीं थी, फिर भी क्यों लिखा?