________________ 27 ] xxx सभी देवेन्द्रों ने अपनी अपनी मर्यादा के अनुसार प्रभु की दादों और दांतों को तथा शेष क्षेत्रों के प्रभु की अस्थियों को पहा किया। मीमांसा-उक्त कथन में प्राचार्य ने "मर्यादा के अनुसार" ऐसा लिखकर कपट करना चाहा है क्योंकि सिर्फ “मर्यादा के अनुसार" लिखना एकान्तवाद होने से अनुचित है / स्थानकमार्गी अमोलक ऋषि कृत जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के पृ० 100 पर लिखा है कि Xxx कितनेक देव तीर्थंकरों की भक्ति के वश से, कितनेक अपना जीताचार समझ के और कितनेक ने धर्म जानकर ( दाढ़ों को ) ग्रहण किया।xxx शास्त्र पाठ यथा xxx “केई जिणे भत्तिए केई जीयमयंतिकटु केई धम्मोत्तिकट्टु गिहति"७७७ मीमांसा-'जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति' प्रागमानुसार देव तीर्थंकर की भक्तिवश और धर्म समझकर भी दाढ़ों को ग्रहण करते हैं। इसप्रकार का आगमिक तथ्य होते हुए भी सिर्फ "मर्यादानुसार" लिखने में प्राचार्य की एकान्तवादी हठधर्मिता ही माननी चाहिए। प्राचार्य को यह भूलना नहीं चाहिए कि यह लौकिक धर्मकरणी नहीं है, किन्तु लोकोत्तर धर्म करणी है। तथा इतिहासकार प्राचार्य ने चालाकी पूर्वक तीर्थंकर परमात्मा की दाढ़ों वंदनीय एवं पर्युपासनीय हैं और अस्थियाँ भी पूजनीय हैं इस सत्य तथ्य को भी गुप्त रखा है / स्थानकपंथी अमोलकऋषि कृत श्री राजप्रश्नीय सूत्र का हिन्दी अनुवाद पृ० 160 पर लिखा है कि