________________ [ प्रकरण-७] श्री अष्टापद गिरि पर जिन मंदिर प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान का अष्टापद पर्वत पर निर्वाण हुअा, वहाँ उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती ने सोने के मंदिर बनवाकर चौबीसों भगवान के शरीर की ऊँचाई के प्रमाण रत्न की प्रतिमा चार, पाठ, दस और दो के क्रम से चारों दिशाओं में विराजमान की थीं। श्री ऋषभदेव भगवान की निर्वाण भूमि अष्टापद पर्वत के विषय में प्राचार्य लिखते हैं कि xxx उन चार प्रकार के देवों ने क्रमशः प्रभु को चिता पर, गणधरों की चिता पर और अणगारों की चिता पर तीन चैत्यस्तूप का निर्माण किया।xxx सो . मीमांसा–प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान के निर्वाण स्थल पर देवों ने चैत्यस्तूप का निर्माण किया किन्तु श्री अजितनाथ, श्री सम्भवनाथ आदि तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि पर देवों ने चैत्यस्तूप का निर्माण किया कि नहीं ? इस बात को प्राचार्य ने अस्पष्ट ही रखी है / प्राचार्य श्री मलयगिरिजी के कथनानुसार भरत ने चैत्यस्तूप का निर्माण करवाया था। खंड 1, पृ० 131 पर प्राचार्य हस्तीमलजी पूज्यपाद श्री मलयगिरि महाराज के उद्धरण पूर्वक लिखते हैं कि