________________ [ 20 ] 444 उदायी का राज छत्र भी स्वतः ही नन्द के मस्तक पर तन गया और नन्द के दोनों ओर मन्त्राधिष्ठित वे दोनों चामर स्वतः ही अदृश्य शक्ति से प्रेरित हो, व्यजित होने लगे।xxx मीमांसा-उक्त बात भी इतिहासकार प्राचार्य ने कौन से मूलागम में से लिखी है ? इतना ही नहीं प्राचार्य के माने हुए 32 मूलागम या एकादश अंग के मूलपाठ में कहीं भी सामायिक की विधि, प्रतिक्रमण की विधि, पोसह की विधि का उल्लेख नहीं है। तो फिर सामायिक, प्रतिक्रमण और पौषध प्रादि की विधि वे कौन से प्राधार पर कर रहे हैं ? सच तो यह है कि आगमेतर प्राचीन जैन साहित्य भी हमारे लिये उतना ही विश्वसनीय है जितना आगमशास्त्र / क्योंकि प्रागमेतर जैन साहित्य के रचयिता वे जैनपूर्वाचार्य हैं जो पंचमहाव्रत धारक एवं उत्सूत्रभाषण के वज्रपाप से डरने वाले भवभीरु थे। कलिकाल सर्वज्ञ पूज्यपाद् श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज रचित "त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र" में भरत ने भावि तीर्थंकर मरीचि को प्रणाम किया था ऐसी बात आती है और "त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र" विश्वसनीय है इस बात को प्राचार्य स्वयं ही खंड 2, पृ० 56 पर कहते हैं 888 यह है आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि द्वारा विरचित त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र का उल्लेख जो पिछली आठ शताब्दियों से भी अधिक समय से लोकप्रिय रहा है / Xxx मीमांसा- बहुत सी ऐसी बातें हैं जिसको प्रमाणित करने के लिये प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य का ही एकमात्र प्रमाणिक सहारा और सच्चा आधार है। फिर भी मरीचि को भरत द्वारा किये गये प्रणाम के विषय में प्राचार्य का लिखना कि-"ऐसी कोई बात आगमों