________________ [ 4 ] इस इतिहास में प्राचार्य हस्तीमलजी ने जगह-जगह असत्य लिखकर जैनधर्मके विषयमें भ्रम फैलाया है। कथानकों के तथ्योंको गलत लिखकर ऐतिहासिक वास्तविकता की ओर से प्रांखें बन्द करली हैं / इसको जैनधर्म का इतिहास कहना मजाक मात्र है। प्राचार्य द्वारा इतिहास में जिनमंदिर, जिनप्रतिमा तथा जिनप्रतिमा पूजा के विषय में सत्य तथ्य छिपाने और जैनधर्म की गरिमा को घटाने का निकृष्ट प्रयास किया गया है, जो सर्वथा प्रस्तुत्य है / स्थानक पंथ व्यामोह में फैसकर, स्वपंथ के तुच्छ स्वार्थवश प्रतिमा प्रादि अनेक विषयों में जानबूझकर परिवर्तन कर एवं सत्य बात से दूर रहकर प्राचार्य ने अपना उल्लू सीधा करना चाहा है। जैनागमों एवं प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य तथा प्राचीन मूर्तियाँ, शिलालेख आदि तथ्यों से जिनप्रतिमापूजा सत्य सिद्ध होते हुए भी अप्रामाणिक बातें लिखकर प्राचार्य ने सर्वथा झूठ का सहारा लिया है। स्थानकमार्गी सम्प्रदाय के जानेमाने विद्वान प्राचार्य हस्तीमलजी महाराज ने तटस्थता, निष्पक्षता एवं सत्य लिखने की प्रतिज्ञा करने के बावजूद भी सत्य पथ से विपरीत चलकर जैनधर्म को भारी क्षति पहुंचायी है। स्थानकमार्गी समर्थ आचार्य इतनी बड़ी अप्रामाणिकता कर सकते हैं यह भी एक सखेद पाश्चर्य है। एक प्रामाणिक इतिहासकार को चाहिए कि वह चाहे कोई भी पंथ या प्राम्नाय में विश्वास करते हों किन्तु वे जिस पंथ या प्राम्नाय के विषय में लिखें, वह सत्य होना चाहिए। किन्तु प्राचार्य ने जैनधर्म विषयक इतिहास को असत्य लिखकर जैन समाज में विषैला भ्रम फैलाया है। हमारा यह स्पष्ट मत है कि कोई भी स्थानकपंथी कभी भी जैनधर्म विषयक इतिहास को सत्य और प्रामाणिक लिख ही नहीं