________________ [ 2 ] हुई है। तटस्थ इतिहास लिखने का दावा करने वाले प्राचार्य ने पुस्तक में तीर्थंकर परमात्मा की प्राकृति (तस्वीर) कहीं भी नहीं छपवायी है / तीर्थंकरों की भिन्न-भिन्न पहिचान कराने वाले लांछन चित्र देकर प्रौर तीर्थंकरों की तस्वीर न देकर प्राचार्य ने बहुत अनुचित कार्य किया है / किन्तु इस पुस्तक के अन्दर दानदाता गृहस्थ की तस्वीर अवश्य छपवायी है / इतिहास लेखक ने ज्ञानदाता तीर्थंकर परमात्मा की तस्वीर न छपवाकर और द्रव्यदाता गृहस्थ की तस्वीर छपवाकर पुस्तक के प्रारम्भ में ही उल्टी गंगा बहायी है। क्या उत्कृष्ट ज्ञानदाता तीर्थंकर परमात्मा से भी बढ़कर द्रव्यदाता गृहस्थ उपकारी है ? जो कि ज्ञानदाता की तस्वीर इतिहास में नहीं छपवायी और द्रव्यदाता गृहस्थ की तस्वीर छपवायी गयी। ____ यद्यपि इतिहास में नमस्कार महामंत्र और लोगस्स सूत्र का लिपिमय प्राकृति द्वारा प्राचार्य ने द्रव्य मंगल किया है। किन्तु तीर्थंकर की चित्रमय प्राकृति से द्रव्य मंगल नहीं माना ऐसा फर्क क्यों ? प्राचार्य को यह भूलना नहीं चाहिए कि तीर्थंकर भगवान के नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव चारों ही निक्षेप मंगल रूप हैं एवं जगत के उपकारक भी हैं। "नामाकृतिद्रव्य भावः, पुनतस्त्रिजगज्जनम् / क्षेत्रे काले च सर्वस्मिन्नर्हतः, समुपास्महे / / " यह त्रिकाल अबाधित सत्य होते हुए भी प्राचार्य ने इसकी उपेक्षा की है। ये दो खंड करीब दो हजार पृष्ठों में प्रकाशित हैं। प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान से लेकर चरम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान तक [ एक कोड़ा कोड़ी सागरोपमकाल ] का इतिहास प्रथम खंड में तथा दूसरे खंड में श्री महावीर भगवान के प्रथम गणधर श्री