________________ [6] xxx इस प्रकार घोषणा करवाने के पश्चात् शक्र और सभी देवेन्द्रों ने नन्दीश्वर द्वीप में जाकर तीर्थकर भगवान का अष्टान्हिक जन्म-महोत्सव मनाया / "बड़े हर्षोल्लास" के साथ अष्टान्हिक महोत्सव मनाने के पश्चात् सभी देव और देवेन्द्र आदि अपने अपने स्थान लौट गये।४४४ ___ मीमांसा - "बडे हर्षोल्लास" शब्द से यह स्पष्ट होता है कि देवों द्वारा जन्माभिषेकादि महोत्सव मनाना परम्परागत या रूढि मात्र ही नहीं है। क्योंकि परम्परागत और रूढि की क्रिया में तो प्रायः हर्षोल्लास का अभाव ही पाया जाता है / अत: प्राचार्य हस्तीमलजी का परम्परागत, शाश्वत नियम, जिताचार प्रादि शब्दों का प्रयोग करना नितान्त भ्रान्तिपूर्ण ही है / अगर देव फार्मोलिटी पूरी करते यानी रीतरश्म निभाने हेतु ही महोत्सव मनाते तो "बड़ा हर्षोल्लास" नहीं आता। सिर्फ खाना पति ही करनी होती तो नंदीश्वर द्वीप में जाकर लगातार पाठ दिन का महोत्सव मनाना और वह भी "बड़े हर्षोल्लास से" यह परम्परा से संभव नहीं हो सकता जैसा कि उनका कहना है / देव और देवेन्द्रों के दिल में अपने तारक देवाधिदेव परमात्मा के प्रति इतनी अपार भक्ति है कि भगवान का जन्म-महोत्सव मेरुपर्वत पर भगवान को ले जाकर करने पर भी संतुष्ट न हुए, तो बाद में भगवान को लाकर, माता को सौंपकर सब देवों ने नन्दोश्वर द्वीप में जाकर, वहाँ स्थित शाश्वत जिनमन्दिरों में लगातार आठ दिन का अपार भक्तिवश अष्टाह्निक महोत्सव मनाया। केवल जिताचार, परम्परागत ऐसे तुच्छ शब्दों का प्रयोग करके और नन्दीश्वर द्वीप स्थित शाश्वत जिन मन्दिरों का उल्लेख न करके प्राचार्य ने इन देव-देवेन्द्रों की अपार भक्ति की महिमा को कम करने का एवं सत् वस्तु "नन्दीश्वरद्वीप स्थित शाश्वत जिन मन्दिरों का" विरोध करने का निर्लज्ज प्रयास किया है, जो सर्वथा अनुचित है।