________________ [ 13 ] रूप कार्य नहीं होता तो तीन दिन का निराहार तप करके उनको बुलाना व्यर्थ ही था / ऐसी दशा में "सिद्धान्त प्रश्नोत्तरी" किताब में देव-देवियां कुछ देते नहीं हैं ऐसा प्राचार्य का लिखना सर्वथा झूठ ही रहा। अपरं च वैरोट्या देवी के विषय में खंड-२ पृ० 550 पर प्राचार्य लिखते हैं कि xxx भगवान पार्श्वनाथ के चरणों में भक्ति रखने वाले भक्तों के कष्टों का निवारण करने में वह ( वैरोट्यादेवी धरणेन्द्र की महिषी ) समय समय पर उनकी सहायता करने लगी।xxx मीमांसा-इन तथ्यों से इस बात की सिद्धि होती है कि स्थानकपंथी लोग जो देव-देवियों के विषय में भ्रमपूर्ण बात लिखते मानते हैं, उनका यह भ्रम दूर हुआ होगा। खंड-१, पृ० 524 पर प्राचार्य लिखते हैं कि 800 श्रद्धालु भक्तों को यह निश्चित धारणा है कि इन ( पद्मावती, काली, महाकाली आदि ) देवियों (धरणेन्द्र आदि ) देवों और देवेन्द्रों ने समय समय पर शासन को प्रभावना की है। इसका प्रमाण यह है कि धरणेन्द्र और पद्मावती के स्तोत्र आज भी प्रचलित हैं।४४४ मीमांसा-"श्रद्धालु भक्तों की यह धारणा है" ऐसा लिखने का अर्थ तो यही हो सकता है कि प्रश्रद्धालु होने के कारण प्राचार्य की ऐसी धारणा नहीं है। यानी स्थानकपंथी प्राचार्य हस्तीमलजी शासन रक्षक देव-देवियों में अविश्वास करते हैं, किन्तु यह जैनागम और प्रागमेतर प्राचीन जैन साहित्य का ही अविश्वास एवं अनादर करने के बराबर है / खंड-२, पृ० 550 पर आचार्य लिखते हैं कि