________________ [प्रकरण-२] तीर्थंकरों का जन्म महोत्सव जब भी पुण्यात्मा तीर्थंकर परमात्मा का जन्म होता है, तब छप्पन दिक्कुमारिकाएं आती हैं, माता एवं पुत्र का सुचिकर्म करती हैं। इन्द्रों का सिंहासन कंपायमान होता है / सौधर्म इन्द्र भगवान को मेरुपर्वत पर ले जाता है, वहाँ 64 इन्द्र इकट्ठे होकर अपार भक्तिपूर्वक जन्माभिषेक महोत्सव सानन्द मनाते हैं / बाद में वे देव-देवेन्द्र नंदीश्वरद्वीप में जाकर, वहां स्थित शाश्वत जिनमंदिरों में पाठ दिन का भक्ति महोत्सव मनाते हैं। "जैनधर्म का मौलिक इतिहास", खंड-१, पृ० 15 पर प्राचार्य हस्तीमलजी लिखते हैं कि Xxx महान पुण्यात्मा ( तीर्थकर परमात्मा ) जब जन्म ग्रहण करते हैं, उस समय 56 विककुमारियों और 64 देवेन्द्रों के आसन प्रकम्पित होते हैं / अवधिज्ञान के उपयोग के द्वारा जब उन्हें विदित होता है कि तीर्थकर का जन्म हो गया है, तो वे सब अनादिकालसे "परंपरागत" दिककुमारियों और देवेन्द्रों के "जीताचार" के अनुसार अपनी अद्भुत दिव्यदेव ऋद्धि के साथ अपनी अपनी मर्यादा के अनुसार तीर्थंकर के जन्मगृह तथा, मेरुपर्वत और नन्दीश्वर द्वीप में उपस्थित हो, बड़े ही हर्षोल्लास पूर्वक जन्माभिषेक आदि के रूप में तीर्थंकर का जन्म महोत्सव मनाते हैं / यह संसार का एक अनादि अनन्त शाश्वत नियम है।