________________ 4 तएणं से सिद्धत्थे राया दसाहियाए ठिइवडियाए वट्टमाणीए सइए अ साहस्सिए अ "जाए" अ दाए अ भाए अ दलमारणे म।xxx यहां प्राचीन टीकाकार महर्षि ने 'जाए' यानी याग का अर्थ जिनपूजा किया है। श्री आचारांग सूत्र, द्वितीय श्रुतस्कन्ध, तृतीय चूलिका पन्द्रहवें अध्ययन में भगवान श्री महावीर स्वामी के माता-पिता त्रिशलादेवी और सिद्धार्थ राजा को श्री पार्श्वनाथ भगवान की परम्परा के ( संतानीय ) श्रावक बताये हैं। ऐसी दशा में श्री कल्पसूत्र शास्त्र कथित "जाए" यानी याग शब्द का अर्थ 'जिनपूजा' के सिवा अन्य क्या हो सकता है ? याग शब्द में यज् धातु है, जिसका अर्थ देवपूजा भी होता है। / प्रश्न होगा कि-"क्या पत्थर की गाय दूध देने में समर्थ है ? हां, पत्थर की गाय केवल पहिचान के लिए अवश्य काम आ सकती है।"-इस प्रश्न का उत्तर यह है कि-"गाय-गाय" ऐसा नाम जाप करने से भी क्या गाय नाम का जाप दूध देने में समर्थ होगा? परमात्मा की मानी गई चैतन्य हीन मूर्ति अगर शुभ ध्यान एवं शुभ भाव में सहायक नहीं मानी जाए तो फिर परमात्मा का जड़ नाम शुभ अध्यवसाय में सहायक कैसे माना जा सकता है ? प्रस्तु / स्थापना निक्षेप का निषेध करने वाले कोई स्थानकपंथी अगर लोकोत्तर जैनधर्म का इतिहास लिखेगा तो जैसे कोई नादान वालक इधर-उधर टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें निकालकर उसको Map of India ( भारत का मानचित्र ) कहे और तुच्छ आनन्द मनाये ऐसी ही कुछ अजीब सी बाल चेष्टा प्राचार्य हस्तीमलजी ने जैनधर्म विषयक इतिहास को कल्पित एवं गलत लिखकर की है, जिससे जैन समाज को सावधान एवं सतर्क रहने की अत्यन्त आवश्यकता है।