________________ 18 को दिशा परिवर्तन की प्रेरणा भी मिलेगी, उत्पथगामियों को सत्यमार्ग का प्रकाश मिलेगा। मूर्तिपूजा शास्त्रोक्त और प्रात्मोन्नति के लिए आवश्यक एवं अनिवार्य है. इस तथ्य की सिद्धि में हजारों प्रमाण मौजूद हैं। मूर्तिपूजा को प्रमाणित करने वाले प्राचार्यों में उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज का नाम प्रातः स्मरणीय है। स्थानकवासी सम्प्रदाय में भी प्राज इनके जैन-तर्क भाषा आदि ग्रन्थों को बड़ी प्रतिष्ठा है। प्रतिमाशतक, प्रतिमा स्थापन न्याय, कूप दृष्टान्त विशदी करण, उपदेश रहस्य, षोडषक टीका इत्यादि ग्रन्थों में जिन अकाट्य प्रमाणों का निर्देश किया है, उनके सामने सभी स्थानकवासियों का मुंह आज तक बन्द ही रहा है। किसी ने भी उसके खिलाफ कुछ भी लिखने का प्राज तक साहस नहीं किया है। / मूर्तिपूजा के समर्थक और भी कई ग्रन्थ हैं जिनमें ये प्रमुख हैं-वाचक शेखर श्री उमास्वाति प्राचार्य महाराज कृत पूजा प्रकरण, 14 पूर्वी पूज्य भद्रबाहुस्वामी महाराज कृत आवश्यक नियुक्ति प्रादि, प्राचार्य श्री हरिभद्रसूरि महाराज कृत पूजा पंचाशक प्रकरण, षोड़शक प्रकरण और श्रावक प्रज्ञप्ति टीका एवं ललितविस्तरा ग्रन्थ, प्राचार्य श्री शांतिसूरिजी महाराज कृत चैत्यवंदन बृहद्भाष्य, अवधिज्ञानी श्री धर्मदासगणि महाराजकृत उपदेशमाला, कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज कृत योग शास्त्र आदि ग्रन्थ निधि, नवांगी टीकाकार प्राचार्य श्री मभयदेवसूरि महाराज कृत पंचाशक वृत्ति / / तदुपरान्त श्री ज्ञाता सूत्र, ठाणांग सूत्र, रायपसेणी सूत्र, जीवाभीगम सूत्र, महा प्रत्याख्यान सूत्र, महाकल्पसूत्र, महानिशीथ सूत्र इत्यादि मूल अंग-उपांग सूत्रों में भी मूर्तिपूजा के अनेक उल्लेख भरे