________________ 19. महा कल्पसूत्र में गौतम स्वामी के प्रश्नोत्तर में श्री महावीर भगवान ने कहा-"जो श्रमण जिन मंदिर को न जाय उसे बेला यो पांच उपवास का प्रायश्चित पाता है। उसी तरह श्रावक को भी।" तथा इसी सूत्र में कहा है-जो श्रावक जिन पूजा नहीं मानते वे मिथ्यादृष्टि हैं। तथा सम्यग्दृष्टि श्रावक को जिनमन्दिर में जाकर चन्दनपुष्पादि से पूजा करनी चाहिए / श्री भगवती सूत्र में तुगीया नगरी के श्रावकों ने स्नान करके देवपूजन किया यह उल्लेख है___"हाया कयबलिकम्मा" / श्री उवाई सूत्र में चम्पा नगरी के वर्णन में "बहुलाई अरिहंत चेइयाई" बहुत से अरिहन्त चैत्यों यानी जिन मंदिर का उल्लेख है। श्री भगवती सूत्र में चमरेन्द्र के अधिकार में तीन सरख दिखाये हैं-"अरिहंते वा अरिहंत चेइयारिण वा भाविमप्पणो अणगारस्स वा।" यहां अरिहन्त चेइयाणि का अर्थ अरिहंत की प्रतिमा ऐसा होता है। श्री उपासकदशांग आगम सूत्र में प्रानन्द श्रावक के अधिकार में जिन प्रतिमा वंदन का उल्लेख है ___"नो खलु मे भंते ! कप्पइ......"अन्नउत्थिय परिग्गहियाणि अरिहंत चेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा।" यहां अन्य तीथिकों से परिगृहीत जिमप्रतिमाओं को वंदम नं करने के नियम से अन्य तीथिकों से अपरिगृहीत जिन प्रतिमानों को वन्दन की सिद्धि होती है।