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कौन मुझे भक्ति का लाभ देगा ? कौन मुझे आधी रात को खांस कर जगायेगा ? कौन मुझे आश्वासन देगा ?
रात-दिन जिनके सतत सान्निध्य में मुझे कैसे हूंफआश्वासन और हिंमत मिलते थे, वे सब अब कहां मैं पाउंगा ?
मेरे दोषों के प्रति, मेरी गलतीओं के प्रति, मेरी प्रमादपूर्ण प्रवृत्तिओं के प्रति...
मुझे अब कौन अंगुलि-निर्देश करेगा ? कौन प्रायश्चित्त देगा ?
भक्ति का लाभ जो मिलता था, सतत बरसों तक मैं पूज्यश्री के चरणों में रहा, उसमें अनेक बार मुझे इन महापुरुष गुरुदेव के प्रति, करुणामूर्ति के प्रति अवज्ञा, अविनय का भाव हुआ, अविनीत वर्तन हुआ, पूज्यश्री के हृदय को संतोष नहीं दे पाया, पूज्यश्री की कृपा का पूरा लाभ नहीं ले सका, पूज्यश्री की आज्ञा - आदेश - भावना की अवहीलना की... उन पापों की शुद्धि कहां जा कर करूंगा ?
साक्षात् उपस्थिति में पूज्यश्री का जो लाभ उठाना था, आंतरिक शुद्धि, गुण-वृद्धि और निर्लेप वृत्ति, वह मैं न उठा पाया ।
पूज्यश्री कैसे महान योगी पुरुष ?
और मैं कैसा पामर कापुरुष ?
मेरी नादानियत को, प्रमाद को, क्षतियों को भूल कर मुझे कैसे निभाया है ?
न पूज्यश्री को पुत्र-मोह था... न शिष्य का मोह था...
केवल वीतराग भाव, निर्लेप भाव और निःस्पृह भाव में रमण करते उन परम-पुरुष को रागी-द्वेषी मैं कैसे समझ सकू ?
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