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आजीवन अंतेवासी की अन्तर-व्यथा
आजीवन अंतेवासी पूज्यश्री के साथ
पूज्य पं. श्री कल्पतरुविजयजी पूज्य आचार्यश्री के आजीवन अंतेवासी रहे है। स्वयं पूज्यश्री के पुत्र एवं शिष्य होने पर भी ख्याति एवं लोकेषणा से अत्यंत पर रहे है। पूज्य आचार्यश्री का नाम चारों
ओर विख्यात था, लेकिन पू. कल्पतरु वि. का नाम शायद ही किसीने सुना हो । पूज्यश्री के हर पुस्तकों में पू.पं. कल्पतरु वि. का हर तरह का योगदान होने पर भी एक भी पुस्तक के संपादक के रूप में भी उन्होंने अपना नाम नहीं रखा ।
शिखर के पत्थर को सभी देखते है, नींव के पत्थर को कौन देखेगा? फूल सभी देखते है, मूल को कौन देखेगा? गांधीजी को सभी जानते है, लेकिन महादेव देसाई को जाननेवाले कितने ?
विद्वद्वर्य पूज्य पं. श्री कल्पतरु वि. का पत्र पूज्य पं. मुक्तिचन्द्रविजयजी एवं पूज्य गणि श्री मुनिचन्द्रविजयजी पर आया है, जो हृदय की संवेदना प्रगट करता है, पढने पर आपका हृदय भी द्रवित हो उठेगा ।
- प्रकाशक