Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 17
________________ शलाका पुरुष २. द्वादश चक्रवर्ती निर्देश उनके गुरु (२४ पिता, २४ माता), १२ चक्रवर्ती, हबलदेव, १ नारायण, ११ रुद्र, नारद, २४ कामदेव और १४ कुलकर ये सब भव्य होते हुए नियमसे सिद्ध होते हैं ।१४७३(इनके अतिरिक्त प्रतिनारायण ऊपर गिना दिये गये हैं। ये सब मिलकर १६६ दिव्य पुरुष कहे जाते हैं।) १. शलाका पुरुषका मोक्ष प्राप्ति सम्बन्धी नियम ति.प./४/१४७३ तित्थयरा तग्गुओ चक्कीवलकेसिरुदणारहा। अंगजकुलियरपुरिसा भविया सिझति णियमेण ।१४७३। - तीर्थकर, उनके गुरु ( पिता व माता), चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण, रुद्र, नारद, कामदेव और कुलकर ये सब (प्रतिनारायणको छोड़कर १६० दिव्य पुरुष ) भव्य होते हुए नियमसे (उसी भवमें या अगले १, २ भवोंमें ) सिद्ध होते हैं ।१४७३ ४. शलाका पुरुषोंका परस्पर मिलाप नहीं होता ह. पु./४/५६-६. नान्योन्यदर्शन जातु चक्रिणां धर्मचक्रिणाम् ।। हलिनो वासुदेवानां त्रैलोक्ये प्रतिक्रिणाम् ॥५६॥ गतस्य चिह्नमात्रेण तव तस्य च दर्शनम् । शवस्फोटनिनादैश्च रथ ध्वजनिरीक्षणैः ६०१ -- तीन लोकमें कभी चक्रवर्ती-चक्रवतियोंका, तीर्थकर-तीर्थकरोंका, बलभद्र-बलभद्रोंका, नारायण-नारायणोंका और प्रलिनारायण-प्रतिनारायणोंका परस्पर मिलाप नहीं होता। तुम (धातकी खण्डका कपिल नामक नारायण ) जाओगे तो चिह्न मात्रसे ही उसका (कृष्ण नारायणका) और तुम्हारा मिलाप होगा। एक दूसरेके शंख का शब्द सुनना तथा रथोंकी ध्वजाओंका देखना इन्हीं चिह्नोंसे तुम्हारा उसका साक्षात्कार हो सकेगा ।५६-६०॥ ५. शलाका पुरुषों के शरीरकी विशेषता ति. प./४/१३७१ आदि मसंहण्ण जुदा सव्वे तवणिज्जवण्णवरदेहा। सयलसुलक्षण भरिया समचउरस्संगसंठाणा ।१३७१। - सभी वज्रऋषभ नाराच संहननसे सहित, सुवर्ण के समान वर्ण वाले, उत्तम शरीरके धारक, सम्पूर्ण सुलक्षणोंसे युक्त और समचतुरस रूप शरीरसंस्थानसे युक्त होते हैं ।१३७१। बो. पा./टी./३२/१८ पर उद्धृत-देवा वि य गैरइया हलहरचक्की य तह य तित्थयरा । सव्वे केसव रामा कामानिक्कंचिया होति । सर्व देव, नारकी, हलधर (बलदेव), चक्रवर्ती तीर्थक्रं, केशव ( नारायण ) राम और कामदेव मूंछ-दाढ़ीसे रहित होते हैं। २. द्वादश चक्रवर्ती निर्देश १. चक्रवर्तीका लक्षण ति.प./१/४८ छक्लंड भरहणादो बत्तीससहस्समउडबद्धपहुदीओ। होदि है सयलं चक्की तित्थयरो सयलभुवणवई ।४।-जो छह खण्डरूप भरतक्षेत्रका स्वामी हो और बत्तीस हज़ार मुकुट बद्ध राजाओंका तेजस्वी अधिपति हो वह सकल चक्री होता है।...४८। (ध. १/१, १.१/गा,४३/५८)(त्रि. सा./६८५) २. नाम व पूर्वमव परिचय पूर्व भव नं.२ पूर्वभव |म. पु./सर्ग/श्लो. १. प. पु./२०/१२४-१९३ २. म. पु./पूर्ववत १. प.पु./२०/१२४-१६३ २, म. पु./पूर्ववत १. ति.प./४/५१५-५१६ २. त्रि. सा./८१५. ३. प.पु./२०/१२४-१६३ ४. ह.पु./६०/२८६-२८७ ५. म. पु./पूर्ववत् भरत नगर दीक्षागुरु स्वर्ग नाम राजा __ पीठ पुण्डरी किणी कुशसेन सर्वार्थ सिद्धि । २ अच्युत विजय वि० ४८/६९-७८ सगर पृथिवीपुर यशोधर ६१/६१-१०१ मघवा विजय (२ जयसेन शशिप्रभ (२नरपति धर्मरुचि पुण्डरी किणी विमल ग्रैवेयक माहेन्द्र 1 २ अच्युत ६२/१०१/१०६ सनत्कु० शान्ति* सुप्रभ महापुरी देतीर्थकर ६४/१२-२२ ६५/१४-३० कुन्थु अर* सुभौम धान्यपुर ६६/७६-८० एम कनकाभ (२ भूपाल चिन्त (२ प्रजापाल महेन्द्रदत्त वीतशोका (२ श्रीपुर विजय विचित्र गुप्त १२ सम्भूत सुप्रभ १२ शिवगुप्त नन्दन ६७/६४-६५ हरिषेण जयन्त वि० १२ महाशुक्र ब्रह्मस्वर्ग २अच्युत माहेन्द्र १२ सनत्कुमार ब्रह्मस्वर्ग १२ महाशुक्र कमलगुल्म मि० ६६/७८-८० IS जयसेन ४ जय | ब्रह्मदत्त अमितांग २ वसुन्धर सम्भूत राजपुर ।। २ श्रीपुर काशी सुधर्ममित्र १२ वररुचि स्वतन्त्रलिंग ७२/२८७-२८८ * शान्ति कुन्थु और अर ये तीनों चक्रवर्ती भी थे और तीर्थकर भी। प्रमाण नं. २,३,४ के अनुसार इनका नाम महापद्म था। यह राजा प उन्हीं विष्णुकुमार मुनिके बड़े भाई थे जिन्होंने ७५० मुनियोंकी राजा बलि कृत उपसर्ग से रक्षा की थी। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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