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शलाका पुरुष
२. द्वादश चक्रवर्ती निर्देश
४. चौदह रत्न परिचय विशेष
९. नव निधि परिचय
जीव अजीब
काहे से बने
विशेषताएँ
१निर्देश | २ उत्पत्ति | ३ क्या प्रदान करती हैं १.ति. प./४/गा; २ त्रि. सा./८२३ । क्र. ति.प./ १. ति.प.४/१३८४] १. ति.प./४/१३८६ ३. म. पु./३७/श्लो.;४.ज.प./७/गा.
४/१३८४ २. ति.प.४/१३८५ २. त्रि.सा./८२२ २. त्रि.सा./
३. ह. पु./१२/११४-१२२ ८२१,
४. म.पु./३७/७५-८२ ३. ह.पु./११/
१-११०
विशेष
| १.ति. प./४/१३७७-१३७६
२. म. पु./३७/८४
ति.प./४/१३८१
४.म.पु./३७/ दृष्टि सं. दृष्टि से.|
सामान्य
प्रमाणसं
বিষ
चक्र
अजीव
छत्र
खड्ग
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"
"
दे. नीचे
काकिणी
"
"
६ मणि ७/चर्म |
1- म. प्र./ ३७/१७१
८ सेनापति १ गृहपति १० गज
| अश्व १२ पुरोहित
शत्रु संहार १२ योजन लम्बा और इतना ही ।।१] काल श्रीपुर नदीमुख ऋतुके अनु-३,४ निमित्त, न्याय, चौड़ा है। वर्षासे कटक की रक्षा
सार पुष्प व्याकरण आदि करता है।४/१४०-१४१
फल आदि विषयक अनेक शत्रु संहार
प्रकारके शास्त्र विजयाधं गुफा द्वार उद्घाटन
४ माँसुरी, नगाड़े ११/१३३०:२/४/१२४। गुफाके कांटों
आदि पंचेन्द्रिय आदिका शोधन ।३/१७०। वृषभा
के मनोज्ञ विषय चलपर चक्रवर्तीका नाम लिखना। २ महाकाल
भाजन ३पंचलोह आदि १/१३५४।।
धातुएँ विजयाधकी गुफाओंका अन्ध
४ असि, मसि कार दूर करना ।१/१३३६:३/१७३।
आदिके साधनघृषभाचल पर नाम लिखना।२।
भूत द्रव्य ||३| पाण्डु
४ धान्य तथा विजयाध की गुफामें उजाला करना।
| " | " धान्य
| मदरस म्लेच्छ राजा कृत जलके ऊपर तैरकर
मानव
आयुध
४ नोति व अन्य अपने ऊपर सारे कटकको आश्रय
अनेक विषयों के देता है । (२:३/१७१, ४/१४०)
शास्त्र ५ | शंख
| वादित्र हिसाब किताब आदि रखना ।३/१७६३ ||
वस्त्र | ७ | नै सर्प
हर्म्य३,४ शय्या, आसन,
(भवन)। भाजन आदि दैवी उपद्रवोंकी शान्तिके अर्थ
उपभोग्य वस्तुएँ ____ अनुष्ठान करना (३/१७५) पिंगल .
आभरण नदीपर पुल बनाना (१/१३४२:४/१३१|| नानारत्न
अनेक प्रकार मकान आदि बनाना।३/१७७१
के रत्न आदि नोट-ह. पु./११/१०६। इन रत्नों में से प्रत्येक की एक एक | ४. विशेषताएँ हजार देव रक्षा करते थे।
ह. पु./११/१११-११३,१२३ अमी...निधयोऽनिधना नब। पालिता निधिपालारव्यैः सुरै र्लोकोपयोगिनः ।१११३ शकटाकृतयः सर्वे चतु. रक्षाष्ट चक्रकाः। नवयोजन विस्तीर्णा द्वादशायामसंमिताः ॥११॥ ते चाष्टयोजनागाधा महुवक्षारकुक्षयः । नित्यं यक्षसहमण प्रत्येक रक्षितेक्षिताः ।११। कामवृष्टिवशास्तेऽमी नवापि निधयः सदा। निष्पादयन्ति निःशेष चक्रवर्तिमनीषितम् ॥१२३। - ये सभी निधियाँ अबिनाशी थीं। निधिपाल नामके देवों द्वारा सुरक्षित थीं। और निरन्तर लोगों के उपकारमें आती थी ।११। ये गाड़ीके आकारकी थी। योजन चौड़ी, १२ योजन लम्बी, ८ योजन गहरी और वक्षार गिरिके समान विशाल कुक्षिसे सहित थीं। प्रत्येककी एक-एक हजार यक्ष निरन्तर देखरेख रखते थे ।११२-११३। ये नौ की नो निधियाँ कामवृष्टि नामक गृहपति (ध्वाँ रत्न ) के अधीन थी। और सदा चक्रवर्ती के समस्त मनोरथोंको पूर्ण करती थी ।१२३।
१३ स्थपति
१४ | युवती
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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