Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 23
________________ शलाका पुरुष ३. नव बलदेव निर्देश यहाँसे पूर्व खण्डके म्लेक्ष राजाओंको छह महीनेमें जीतकर पुनः कटकमें लौट आता है ।१३६६। इस प्रकार छह खण्डोंको जीतकर अपनी राजधानी में लौट आता है। (ह. पु./११/१-५६): (म.पु./२६३६ पर्व/पृ. १-२२०); (ज. प./9/११५-१५१)। और १००० चौपथ हैं ७१६। नगरों के बाह्य चौगिर्द ३६० बाग हैं। और नगरके मध्य जिनमन्दिर, राजमन्दिर व अन्य लोगोंके मन्दिर रत्नमयी शोभते हैं ।...७९७१ १३. राजधानीका स्वरूप ति. सा./७१६-७१७ रयणकवाडवरावर सहस्सदलदार हेमपायारा। बार सहस्सा वीही तत्थ चउप्पह सहस्सेक्क १७१६। णयराण बहि परिदो बणाणि तिसद ससठ्ठि पुरमझे। जिणभवणा परवइ जणगेहा सोहंति रयणमया ७१७१ राजधानी में स्थित नगरोंके ( दे. मनुष्य/ ४) रत्नमयी किवाड़ हैं। उनमें बड़े द्वारों की संख्या १००० है और छोटे ५०० द्वार हैं । सुवर्णमयी कोट है । नगरके मध्यमें १२००० वीथी १४. हुंडावसर्पिणीमें चक्रवर्तीके उत्पत्ति कालमें कुछ अपवाद ति. प./४/१६१६-१६१८...सुसमदुस्समकालस्स ठिदिम्मि थोअवसेसे १६१६। तकाले जायते...पढमचक्की य ।१६१७। चक्विस्सविजयभंगो । - हुण्डावसर्पिणी कालमें कुछ विशेषता है । वह यह कि इस कालमें चौथा काल शेष रहते ही प्रथम चक्रवर्ती उत्पन्न हो जाता है। ( यद्यपि चक्रवर्तीकी विजय कभी भंग नहीं होती। परन्तु इस कालमें उसकी विजय भी भंग होती है।) ३. नव बलदेव निर्देश 1. पूर्व मव परिचय कम म.पु./सर्ग/श्लो. द्वितीय पूर्व भव १. प. पु./२०/२२६-२३५ २. म. पु./पूर्ववत नाम निर्देश १.ति. प./४/५१७,१४११ २. त्रि. सा./८२७ ३. प. पु./२०/२४२ टिप्पणी ४. है. पु./६०/२१० ५. म. पु./पूर्ववत सामान्य । विशेष । प्रथम पूर्व भव (स्वर्ग) १. प. पु./२०/ २३६-२३७ २. म.पु./पूर्ववत् नाम नगर | दीक्षा गुरु । स्वर्ग ५७/८६ विजय पुण्डरीकिणी अमृतसर अनुत्तर विमान १२ महाशुक्र अचल धर्म भद्र सहस्रार ma Gm-0. बल (विशाखभूति) मारुतवेग नन्दिमित्र महाबल पुरुषर्षभ सुदर्शन बसुन्धर १८/८०-८३ ५६/७१,१०६ ६०/५८-६३ ६९/७०,८७ ६५/१७४-१७६ ६६/१०६-१०७ सुप्रभ सुदर्शन नन्दीषण नन्दिमित्र पृथ्वीपुरी आनन्दपुर नन्दपुरी वीतशोका विजयपुर सुसीमा महासुबत सुबत ऋषभ সলাথাল। दमबर सुधर्म नन्दिमित्र नन्दिषेण २ सौधर्म राम पद्म अर्णव 5६७/१४८-१४६ (६८/७३१ श्रीचन्द्र १२ विजय सरिखसज्ञ क्षेमा २ मलय हस्तिनापुर २ सनत्कुमार महाशुक्र बल विद्रुम जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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