Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/13
मानना होगा कि जिन-पूजा-विधि का इससे विकसित एवं प्राचीन उल्लेख श्वेताम्बर परम्परा के आगम साहित्य में अन्यत्र नहीं है। इसी प्रकार जहाँ तक उपधानविधि का प्रश्न है वहां इसका प्रारम्भिक स्वरूप आचारांगसूत्र में और विकसित स्वरूप महानिशीथसूत्र में प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त प्राचीन एवं अर्वाचीन अन्य अनेक प्रकार के जो विधि-विधान हमें दृष्टिगत होते हैं जैसे- पदस्थापनादि की विधि, साधुओं के योग्य चातुर्मासिक कृत्य विधान, संस्तारक आदि लाने की विधि, पुनः लौटाने की विधि, उपधि आदि ग्रहण करने सम्बन्धी विधि आदि का सर्वप्रथम सांकेतिक उल्लेख बृहत्कल्प और व्यवहारसूत्र में मिलता है। इन सूत्रों में कई प्रकार के विधि-विधानों का सामान्य विवरण दिया गया है तो कुछ विधि-विधानों का विस्तृत प्रतिपादन भी उपलब्ध है।
वस्तुतः आगमसाहित्य में छेदसूत्र विधि-विधानों की दृष्टि से आधार रूप हैं। जहाँ तक अनशनविधि, समाधिमरणग्रहणविधि, सागारीसंथारा आदि की विधियों का प्रश्न है तो वह हमें भक्तपरिज्ञा, मरणसमाधि, आतुरप्रत्याख्यान, संस्तारकप्रकीर्णक आदि ग्रन्थों में उपलब्ध होती है इनमें इन विधियों का प्रारम्भिक एवं सुव्यवस्थित स्वरूप देखने को मिलता है। जहाँ तक प्रायश्चित विधि, आलोचना विधि की बात है तो इनका सूक्ष्म रूप बृहत्कल्प और व्यवहारसूत्र में तो प्राप्त होता ही है किन्तु इनका विकसित स्वरूप जीतकल्पसूत्र, निशीथसूत्र, पंचकल्पभाष्य आदि प्राचीन आगमसूत्रों में भी दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त जैन विधि-विधानों की उद्गम एवं विकास की दृष्टि से विचार किया जाये तो दशवैकालिकसूत्र प्रश्नव्याकरणसूत्र, पिंडनियुक्तिसूत्र आदि में जैन मुनियों की आहार विधि का सुन्दर वर्णन परिलक्षित होता है। उपासकदशास्त्र में जैन गृहस्थ के लिए बारह व्रत ग्रहण करने की विधि का प्रारम्भिक रूप उपलब्ध होता है।
इससे आगे बढ़ते हैं तो आवश्यकनियुक्ति आदि नियुक्ति साहित्य के ग्रन्थों, विशेषावश्यकभाष्य आदि भाष्य सम्बन्धी ग्रन्थों एवं निशीथचूर्णि आदि चूर्णिपरक ग्रन्थों में विधि-विधानों का विकसित एवं विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। इस तरह हम पाते हैं कि श्वेताम्बर परम्परा मूलक साहित्य में कहीं सूक्ष्य तो कहीं विस्तृत स्परूप में अधिकांश विधि-विधान उपलब्ध हो जाते हैं।
___ यदि दिगम्बर परम्परा के साहित्य का आलोडन किया जाय तो जैन अनुष्ठानों का उल्लेख सर्वप्रथम हमें कुन्दकुन्द रचित 'दसभक्तियों' में एवं मूलाचार के षड़ावश्यक अध्ययन में मिलता है। दिगम्बर परम्परा में संस्कृत भाषा में रचित 'बारह-भक्तियाँ' भी मिलती है। इन सब भक्तियों में मुख्यतः पंचपरमेष्ठि-तीर्थकर, सिद्ध, आचार्य, मुनि एवं श्रुत आदि की स्तुतियाँ हैं। श्वेताम्बर परम्परा में जिस
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