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नयनन्दि
मीधर
भुतकीर्ति
वासुपूज्य
नेमिचन्द्र लेख के अन्त में गम का नाम बालक्कार गण दिया गया है । इसके बाद शेख नं० २४६ और ४४४ में इस गण के मुनि कुमुदचन्द्र भट्टारक व कुमुदेन्दु का नाम तथा उन्हें कुछ सेट्टियों द्वारा दान का उल्लेख है। लेखों में कोई समय नहीं दिया गया। इसके बाद चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक इस गण के कोई लेख नहीं है । चौदहवीं शता० के उत्तरार्ध के लेखों से इस गण का विशेष प्रभाव योतित होता है। विजयनगर साम्राज्य के नरेश इनका सम्मान करते थे। लेख नं. ५६६ में वीर बुक्कराय के राज्यकाल में इस गण के एक अग्रणी प्राचार्य सिंहनन्दि का उल्लेख है। उनकी उपाधियाँ-राय, राजगुरु तया मण्डलाचार्य थीं। उक्त लेख उनकी गृहस्व शिष्या का समाधिमरण स्मारक है।
लेख नं० ५७२ ( प्रथम भाग १११ ) और ५८५ में इस गण की निम्न प्रकार की परम्परा मिलती है :
कीर्ति (वनवासि के) देवेन्द्र विशालकीति
शुभकीर्ति देव भट्टारक धर्मभूषण (प्रथम) अमरकीर्ति प्राचार्य
धर्मभूषण (द्वितीय)
सिंहनन्दि वर्षमान स्वामी (सिंहनन्दि के चरणसेवक) धर्मभूषण ( तृतीय)