Book Title: Jain Shasan 1999 2000 Book 12 Ank 01 to 48
Author(s): Premchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
Publisher: Mahavir Shasan Prkashan Mandir
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श्रीन शासन (2184138)
मालव प्रदेश के गिरनार तीर्थ स्वरूप आष्टा तीर्थ में तपस्वी सम्राट पूज्यश्री के निमित्व ६८ दिन के भव्य ऐतिहासिक महोत्सव की पूर्णाहुति
इ
मात्वव प्रदेश के गिरनार तीर्थ स्वस्प आष्टा तीर्थ में आष्टा श्री शांतिस्नात्र, श्री ९९ अभिषेक महापूजन, श्री बृहद तीर्थ उद्धारक सुविशुद्ध संयमी निस्पृह शिरोमणि वर्धमान तप की
| अष्टोत्तरी शांति स्नात्र (दो बार) श्री अर्हद अभिषेक महापूजन, श्री ३१००००+८९ ओली (१४१०५ आयंबिल + २८९ उपवास)
अर्हद महापूजन (तीन दिवसीय), भव्यातिभव्य ऐतिहासिक रथयात्रा के अभूतपूर्व विक्रम सर्जक महान आराधक तपस्वी सम्राट पूज्यवाद
आदि अनेक महापूजनों एवं रचनायुक्त श्री अष्टापदजी श्री आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय राजतिलक सूरीश्वरजी म. सा. के
नंदीश्वर द्वीप आदि पूजाओं से समद्ध ६८ दिन का भव्य । सुदीर्घ सुनिर्मल जीवन की हार्दिक अनुमोदनार्थ अनेक महापूजनों
जिनभक्ति महोत्सव दिनॉक ०५-१०-१९९९ श नेवार का बड़े ही आदि समृद्ध ६८ दिन के भव्यतम अविस्मरणीय जिनभक्ति
| हर्षोल्लास के साथ में सम्पन्न हुआ है। महोत्सद ने मध्यप्रदेश के ही नहीं अपितु पूरे भारतवर्ष में आष्टा के
६८-६८ दिनों तक बाहर से पधारे प्रतिष्ठित संगीतकारों के इतिहास को अमर बना दिया है।
द्वारा प्रभु भक्ति, दीपकों की रोशनी में रात्रि में अनुपम भक्ति जो न -जन के मन में आयंबिल की अनुपम आस्था पैदा करने
कभी भी कहीं देखने को नही मिले, भव्य अंगरचना, तरह-तरह की वाले स्व पूज्य आचार्यश्री के आशीर्वाद के प्रभाव से ही २० वी सदी
विविध प्रतिदिन प्रभावनाएँ, प्रतिदिन वीरमगार से पधारे हुए का अनी जिनालय आष्टा में निर्माण को पा सका।
शहनाई वादकों की संगीत सूरावली, पूजा आदि में लाभ लेने वाले ८ साल से निर्माणाधीन जिस जिनमंदिर की प्रतिष्ठा हेतु पुण्यात्माओं के घर से ६८ दिन तक शहनाई वदन व पूजन की विगत कई वर्षों से श्री आष्टा संघ जिनकी प्रतिक्षा में था, वे
सामग्री साथ में प्रवचन श्रवणार्थ आगमन, प्र तेदिन जीवों को तीर्थोद्धरक तपस्वी श्रेष्ठ पूज्य आचार्यश्री वि.सं.२०५४ में
| अभयदान, लोगों की अनुपम उपस्थिति आदि के कारण इतिहास में गिरधरनार (अहमदाबाद) की पावन भूमि पर से स्वर्गलोक के
इस महामहोत्सव ने आष्टा संघ के नाम को सुवर्णाक्षरों से अंकित सिंहासन पर अलंकृत हो गये।
कर दिया है । आकर्षक पत्रिकाओं के माध्यम से भारतभर में श्रीसंघ की भावना अपूर्ण रही, पूज्यश्री के अंतिम हृदयस्थ
| श्रीसंघ की ओर से निमंत्रण भेजने में आया, दू-सुदूर से आष्टा भावों की पूर्ति हेतु वि. स. २०५५ के चातुर्मास हेतु पधारे हुए | पधारने वालों पण्यात्माओं के मख से एक ही बात सनने को। तपस्वी सम्राट पूज्यश्री के शिष्य व्याख्यान वाचस्पति, प्रशांतमुर्ति | मिलती "इतना लम्बा भव्य महोत्सव कभी सुना में नहीं।" पूज्य मुराज हर्षतिलक विजयजी म. सा. आदि ठाणा ३ व
| आष्टाश्रीसंघ के द्वारा ही आयोजित किये गये इस महोत्सव साध्वी श्री प्रशांतदर्शनाश्रीजी आदि ठाणा ५ के सांनिध्य में महान
की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इस भव्य महोत्सव का संपूर्ण तपस्वी ज्य गुरुदेवेश की प्रथम वार्षिक स्वर्गारोहण तिथि के लाभ भी आष्टावासियों ने ही लिया है। जन-जन के मन में विश्व उपलक्ष्य में ३६ दिन का एक भव्य महोत्सव आषाढ शुक्ला १४ | के अद्वितीय महान तपस्वी सम्राट पूज्यश्री के प्रते अद्भुत भाव मंगलवार दिनॉक २७-०७-१९९९ से प्रारंभ हुआ । पूज्यश्री की
क २७-०७-१९९९ स प्रारभ हुआ। पूज्यश्रा का | बना हुआ देखने को मिलता है। प्रथम वार्षिक तिथि भाद्रवा वदी ५ . मंगलवार दिनॉक
आष्टा श्रीसंघ के उपर जिन के आशीर्वाद सदा बरस रहे है । ३१-०८१९९९ को बडे ही ठाठबाठ से महोत्सव की पूर्णाहुति | वैसे महान उपकारी पूज्य गुरुभगवंत के ऋण से आ शक मुक्ति पाने होनी थी किन्तु भावना बढने से पूज्य आचार्यश्री के निर्मल संयम | देत दस जनशस्ति स्व
| हेतु इस जिनभक्ति स्वस्प श्री प्रभुभक्ति के महोत्सव ने आबालवृद्ध
शी भक्ति के मदोमाने जीवन में अनुमोदना हेतु ३६+२९+३ = ६८ दिन का महोत्सव | सभी के दिलों में भगवद भक्ति का एक अनमोल रस उत्पन्न किया। पूर्ण करने का श्रीसंघ के द्वारा निर्णय लिया गया ।
___आष्टा तीर्थ के अधिपति २२०० वर्ष की अधिक प्राचीन श्र १०८ पार्श्वनाथ महापूजन (दो बार), श्री भक्तामर | श्री नेमिनाथ प्रभु की छत्र छाया में सुचारु रूप से सम्पन्न यह महापूजन (दो बार) श्री सद्धिचक्र महापूजन (दो बार), श्री | महोत्सव चिर स्मरणीय बना रहेगा । आप सभी आष्टा तीर्थकी अट्ठारह अभिषेक (तीन बार), श्री ९६ जिनमहापूजन (दो बार), | यात्रार्थ पधारे ।
MirmirmilirulliNIIIIIII